यादों की फिर महक छाई है
शायरी | ग़ज़ल अजयवीर सिंह वर्मा ’क़फ़स’15 Mar 2025 (अंक: 273, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
बहर: मुतदारिक मुसद्दस सालिम
अरकान: फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
तक़्तीअ: 212 212 212
यादों की फिर महक छाई है
तुझ से मिल कर हवा आई है
खटका है जैसे तू आएगा
तू है या कोई परछाई है
है अँधेरा गहन पर ‘क़फ़स’
रौशनी इक उफ़ुक़ पे छाई है
ज़ुल्फ़ है तेरी या काजल सनम
शाम से ही घटा छाई है
तेज़ इक दर्द है सीने में
चोट कोई उभर आई है
उफ़ुक़= क्षितिज
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