इंसान हूँ, हार कभी नहीं मानूँगा मैं
काव्य साहित्य | कविता अजयवीर सिंह वर्मा ’क़फ़स’15 Mar 2020 (अंक: 152, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
दूर सुरमई क्षितिज के पृष्ठभूमि में,
घोंसलों को लौटती परिंदों की क़तारें,
और धीरे-धीरे डूबता सूरज,
याद दिलाता है जीवन का,
एक और दिन हो गया समाप्त।
ठोकर खाऊँगा, गिरूँगा, उठूँगा मैं,
इंसान हूँ, हार कभी नहीं मानूँगा मैं,
और करूँगा एक और कोशिश,
फिर खिलाऊँगा गुलशन नया।
सूरज की पहली किरण के साथ,
अपने घोंसलों से निकल कर,
आसमान को चीरती हुई,
नाद करती, परिंदों की क़तारें,
याद दिलाती हैं, नए दिन की शुरुआत।
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