ब्रांडेड का भूत
कथा साहित्य | कहानी वन्दना पुरोहित1 Apr 2023 (अंक: 226, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
नंदिनी शादी के साल भर बाद अपनी दीदी के घर आगरा जाने की तैयारी कर रही थी अपनी वार्डरोब से महँगे कपड़े ही वह ले जाना चाहती थी इसीलिए सोच में पड़ी थी। तभी आशीष ने आकर कहा, “तुम तो ऐसे सोच में पड़ी हो जैसे शादी के अलग-अलग फ़ंक्शन की ड्रेस ले जानी हो। दीदी के घर ही तो जा रहे हैं।”
नंदिनी बोली, “दीदी, जीजाजी बहुत पैसे वाले हैं वहाँ ऐसे वैसे कपड़े पहनेंगे तो अच्छा नहींं लगेगा। तुम भी अपने ब्रांडेड कपड़े ही अलग कर दो।”
आशीष मुस्कुराते हुए बोला” भाई मैं ठहरा सरकारी नौकर। मेरे पास तो जैसे हैं वैसे ही लूँगा।”
नंदिनी मुँह बनाकर रसोई में चली गई और थोड़ी देर में चाय बना कर ले आई।
आशीष ने अपने कपड़े अलग कर रख दिए उन्हें देखते ही नंदिनी बोली, “आज शॉपिंग करने मॉल चलते हैं। वहाँ से आप एक ब्रांडेड टी शर्ट व जींस ले लेना और दीदी के दोनों बच्चों के लिए गिफ़्ट लेने है॥ वहाँ अच्छे ब्रांडेड गिफ़्ट मिल जायेंगे।”
आशीष के मना करने का कोई फ़ायदा नहींं था। नंदनी मॉल पहुँचकर महँगे से महँगे गिफ़्ट बच्चों के लिए देखने लगी तो आशीष ने उसे रोका लेकिन वो कहाँ रुकने वाली थी। दीदी के दोनों बच्चों के गिफ़्ट पैक करवा कर वह मॉल की शॉप से बाहर निकली तो देखा आशीष अपना पर्स देख रहा था उसके पास जाकर नाराज़ होते हुए नंदिनी बोली, “आज इतने टाइम बाद शॉपिंग की है और आप अपना पर्स देख रहे हैं आपके पास क्रेडिट कार्ड भी तो हैं फिर क्या चिंता।”
आशीष बोला, “नंदिनी इस बार तुम पूरे महीने का बैलेंस बिगाड़ दोगी। मेरी ड्रेस रहने दो वैसे भी पैंट शर्ट तो सभी एक जैसे होते हैं।”
नंदिनी मुँह फुला कर मॉल के बाहर आ गई तो आशीष 2 सॉफ़्टी नंदनी के पास लेकर गया सॉफ़्टी देखते ही नंदिनी बोली, “अब बैलेंस का क्या होगा?”
आशीष मुस्कुराते हुए कहा, “यह सॉफ्टी सुकून देगी। इतना तो बनता है।”
दूसरे दिन ट्रेन से दीदी के शहर आगरा के लिए रवाना हो गए आगरा पहुँचने पर स्टेशन पर दीदी व जीजाजी लेने आ गए। दोनों से मिलकर दीदी व जीजा जी बहुत ख़ुश थे वह शिकायत करने लगे कि साल भर बाद आए हैं। उनकी सरलता व प्रेम भरे व्यवहार का आशीष तो पहले से ही क़ायल था। रेलवे स्टेशन के बाहर उनकी लंबी सी सफ़ेद कार लेकर ड्राइवर मेन गेट के आगे खड़ा हो गया जीजा जी ने ड्राइवर से कह कर सामान रखवाया चारों कार में बैठकर घर के लिए रवाना हो गए। रास्ते भर घर परिवार की बातें होती रहीं। नंदिनी बहुत ख़ुश थी। दीदी उम्र के साथ-साथ समझदार भी थी। जैसे ही कार बड़े से घर के आगे रुकी नंदिनी की आँखें खुली की खुली रह गईं। बोली, “वाह दीदी! कितना सुंदर घर है! आपके तो मज़े हैं वास्तव में शादी तो बिज़नेसमैन से ही करनी चाहिए।”
आशीष यह बात सुनकर बोला “दीदी इन्हें हमारे माथे क्यूँ मढ़ दिया। कोई बिज़नेसमैन ही ढूँढ़ लेती।”
दीदी बीच में ही बोली, “आशीष कौन से कम है तेरे कितने नाज़ उठाते हैं और क्या चाहिए।”
तभी दीदी के दोनों बच्चे मासी-मासी करते ख़ुशी से आवाज़ लगाते हुए दरवाज़े तक आ गए छोटू को गोदी में लेकर नंदिनी ने गले से लगा लिया। घर में प्रवेश करते ही नंदिनी घर को बहुत ग़ौर से देख रही थी तभी दीदी चाय-नाश्ता ले आई। सभी ने बात करते हुए चाय-नाश्ता किया। चाय-नाश्ते के बाद नंदिनी ने बच्चों के गिफ़्ट निकाले और दोनों बच्चों को आवाज़ लगाई “छोऽऽटू गुऽऽड़िऽऽया देखो मासी तुम्हारे लिए क्या लायी जल्दी से अपने-अपने गिफ़्ट ले लो।” बच्चों ने भी ख़ुशी से दौड़कर मासी से गिफ़्ट ले लिए। जीजाजी दीदी व आशीष वहीं बैठे थे। गुड़िया ने अपना गिफ़्ट खोला तो बार्बी डॉल व किचन सेट था छोटू के लिए बड़ी रिमोट कार जिसे देखकर दोनों बहुत ख़ुश थे। मासी से लिपटकर कहने लगे, “मासी आप कितनी अच्छी हो। मम्मी से बहुत दिनों से ज़िद कर रहे थे लेकिन मम्मी ने यह टॉय दिलाए ही नहीं। कहती है महँगे हैं।”
उनकी बात सुन नंदिनी ने कहा, “दीदी, आप इतने पैसे वाली हो कर भी बच्चों की ख़्वाहिश पूरी नहीं करती। मेरे पास पैसा होता तो बच्चों के लिए और भी ब्रांडेड गिफ़्ट लेकर आती।”
जीजाजी बीच में ही बोल पड़े, “तुम्हारी दीदी कंजूस है।” और ज़ोर से ठहाका लगाने लगे उनके साथ नंदिनी भी शामिल हो गई। आशीष चुपचाप यह सब देख सुन रहा था। तभी दीदी ने कहा, “नंदिनी, बात पैसे ज़्यादा या कम की नहीं है। तुम्हारे जीजा जी ने कितनी मेहनत से अपना बिज़नेस खड़ा किया है। रुपए की क़ीमत बच्चों को हम ना सिखायेंगे तो यह फ़ुज़ूल ख़र्च करेंगे इसलिए मैं बच्चों को महँगे खिलौने व ब्रांडेड के चक्कर में नहीं पड़ने देती।”
जीजाजी ने भी अब दीदी की बात से सहमत होकर कहा, “तभी नंदिनी, तुम्हारी दीदी कभी बच्चों को साथ ले जाकर ख़रीदारी नहीं करती।”
अब तो नंदिनी भी मुस्कराकर बोली, “दीदी, आपने आशीष को बचा लिया अब तो मैं भी सोच समझ कर ही ख़र्च करूँगी।”
आशीष से भी रहा न गया वह बोल ही पड़ा, “आने से पहले नंदिनी पर ब्रांडेड का भूत चढ़ा था अच्छा हुआ दीदी आपने उतार दिया वरना मेरी पॉकेट तो ख़ाली कर दी थी। दीदी, नंदिनी के ब्रांडेड भूत को उतारने के लिए धन्यवाद!”आशीष की बात पर सभी ठहाका लगाकर हँस पड़े।
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