शुभ धनतेरस
कथा साहित्य | कहानी वन्दना पुरोहित1 Nov 2022 (अंक: 216, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
बाज़ार दीपावली की ख़रीदारी के लिए सजे हुए तैयार थे। बाज़ार की दुकानें और दुकान के बाहर तक सुसज्जित सभी सामान ऐसे लग रहे थे मानो ग्राहकों को निमंत्रण दे रहे हों। बाज़ार की भीड़ बता रही थी कि दुकानदारों की दीपावली बहुत अच्छी बनने वाली है। लक्ष्मी का पदार्पण उन्हें हर ग्राहक की जेब से होता नज़र आ रहा था।
सोना कुम्हारिन भी अपने बनाये हुए मिट्टी के दीपक लेकर एक दुकान के आगे बैठने की तैयारी कर रही थी। अपने झोले से दरी निकाल बिछाकर उसने छोटे बड़े दीपक, कुल्हड़ उस पर सजाने लगी। इस बार उसने मिट्टी के रंगीन मुखौटे व तुलसी के स्पेशल रंगीन गमले भी तैयार किये थे। जिन्हें उसके पति राजाराम ने सिर पर उठा रखा था। धीरे-से सँभाल कर जैसे ही राजाराम के सिर से टोकरा नीचे रखा, दो दुकानदार आकर खड़े हो गये और रोब झाड़ने लगे एक बोला, “अरे भाई, यह सब हटाओ यहाँ हमारी दुकान के आगे रास्ता साफ़ रखो।”
दूसरा वाला बोला, “दुकान का भाड़ा हम दें और हमारे ग्राहकों को तुम पहले ही रोक लो। चलो उठो। धनतेरस है, लोग सुबह से ही आने लग जाएँगे हमारा दिन ख़राब मत करो दूसरी जगह ढूँढ़ो।”
राजाराम बोला, “साहब थोड़ी सी जगह ली है और आपकी दुकान के रास्ते की जगह भी छोड़ दी है। लगाने दो ना भाईसाहब हमारे तो यही कमाई के दिन हैं।”
पहला दुकानदार बोला, “हमने कब कहा मत कमाओ। बस कह दिया दूसरी जगह जाओ।”
दूसरा दुकानदार भी ग़ुस्से में आकर बोलने लगा। सोना यह सब पहले तो चुपचाप देखती रही कि आदमी बात कर रहे हैं लेकिन दुकानदारों के जोश खाते ही वह अपने माथे की चुनरी पकड़े बड़ी-बड़ी आँखों को मटकाती हुई बोली, “साहब, धनतेरस है। सुबह-सुबह क्यों माथापच्ची करते हो आप भी कमाओ हम भी कमायें। ऐसा करती हूँ, आप अपनी जगह का 100 रुपये भाड़ा ले लेना लेकिन दुकान यहीं लगाने दो।”
राजाराम ग़ौर से उसे देखने लगा दुकानदार भी कुछ शांत-सा हो गया लेकिन दूसरा बोला, “100 रुपये से क्या होगा? हम दोनों को दे दो 100, 100 तभी दुकान यहाँ लगेगी।”
राजाराम नाराज़ होता हुआ सोना से बोला, “देखो! यह ग़लत है। हम किस बात का रुपया दें। रोड तो सरकार की है।”
राजाराम को सोना ने अपनी बड़ी-बड़ी काजल लगीं आँखों से चुप होने का संकेत दिया और दुकानदारों को बोली, “ठीक है साहब, शाम को दुकान उठाएँगे तब आपको रुपया दे देंगे।” दुकानदार ख़ुश होकर अपनी अपनी सुबह की कमाई तय कर अपनी दुकान में जा बैठे।
राजाराम ने ग़ुस्से से त्यौरियाँ चढ़ा रखी थीं; सोना उसे समझाने लगी, “यहाँ दुकान वाले को तो सौ-सौ रुपये ही देने हैं, उधर फुटपाथ पर पुलिस वाला 500 की बात कर रहा था।”
राजाराम उदासी भरा मुँह बनाकर ग़ुस्से से बोला, “लेकिन यह 200 रुपये भी हमें भारी पड़ेंगे। आजकल लोग रंगीन बत्तियाँ ज़्यादा सजाते हैं। दीपक तो गिनती के ही लेते हैं।”
सोना तपाक से बोली, “इसीलिए तो इस दुकान के आगे बैठी हूँ। औरतें साड़ी और बर्तन ख़रीदेंगी तो निकलते हुए देखना, दीपक ज़रूर लेंगी। हम भी अब अपनी रेट बढ़ा देते हैं 200 रुपये इन्हें भी तो देने हैं।”
राजाराम कुछ नरमी से बोला, “तुमने भी तो सोचा है इस बार कुछ ख़रीदोगी उसका क्या होगा।”
सोना ने कहा, “चिंता ना करो हम धनतेरस पर बड़े लोगों की तरह सोना-चाँदी नहीं ख़रीदेंगे तो क्या? इस बार हम एक स्टील का भगौना लेकर अपनी धनतेरस मना लेंगे इतना तो विश्वास है।”
राजाराम सोना की विश्वास भरी बातों से सहमत हो गया। शाम होते-होते बिक्री होने लगी। औरतें साड़ी व बर्तन ख़रीद कर दीपक ले जाने लगीं। कुछ औरतों को तो दुकानदार भी बताने लगे कि “सोना से दीपक ले लो मैडम जी, बढ़िया दीपक और तुलसी का रंगीन गमला भी है।” दुकानदार के प्रभाव में आकर कुछ औरतें सोना से दीपक व गमले ले जाने लगीं। रात होते-होते आधे से ज़्यादा दीपक व गमले बिक चुके थे। राजाराम व सोना ख़ुशी-ख़ुशी अपनी कमाई गिनने लगे। उसमें से 200 रुपये अलग रख सोना व राजाराम ने दुकानदार को दे दिए। सोना ने दुकानदार से छोटा स्टील का भगौना आज पहली बार धनतेरस पर ख़रीद कर अपनी शुभ धनतेरस मनायी थी। दुकानदारों ने राजाराम को कहा, “तेरी घरवाली तो लक्ष्मी है। कल भी यहाँ दुकान लगा लेना।”
राजाराम अपनी गृहलक्ष्मी सोना की चतुराई पर फूला न समा रहा था। राजाराम और सोना ख़ुशी-ख़ुशी सिर पर अपने बचे हुए दीपक का टोकरा व हाथ में स्टील का चमचमाता भगौना लिये घर की ओर दीपक जलाने व धनतेरस के पूजन के लिये दुगने उत्साह से चल पड़े।
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