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जीवन स्तम्भ

आज ना जाने क्यों नील को माँ की बहुत याद आ रही थी। मोबाइल में सेव कर रखी माँ और नील की तस्वीर में दोनों बहुत प्यारे लग रहे थे। उस तस्वीर पर नज़र पड़ते ही नील अपने बचपन कि मधुर याद में खो गया कैसे बड़े प्यार से थाली में खाना ख़त्म करने के लिए माँ क़िस्से कहानियाँ सुनाया करती और उसे पता भी नहींं चलता कि उसने पूरा खाना ख़त्म भी कर दिया। बार-बार आज नील माँ की तस्वीरें ही देख रहा था। ना जाने आज उसे क्या हो गया था। शाम को अचानक छोटू का फोन आया माँ सीरियस है और हॉस्पिटल में एडमिट है सुनते ही उसका दिमाग़ चकरा गया और उसने घर जाने की फ़्लाइट टिकट बुक करवा ली। 

घर पर अस्पताल से लौटे केदारनाथजी भरी सर्दी में रजाई ओढ़ लेटे थे; पूरी रात नींद न आयी। सुबह बार-बार घड़ी का अलार्म बज रहा था लेकिन बंद करने के लिए रजाई से हाथ निकालना भी ठंड के जमाव बिंदु के कारण मुश्किल लग रहा था। तभी दरवाज़े पर हुई दस्तक के कारण उठना ही पड़ा। अपनी रजाई हटा, चश्मा सँभालते हुए, पैरों में दो पट्टी की चप्पल जैसे-तैसे डाल, दरवाज़े पर पहुँचे और दरवाज़ा खोला तो स्तब्ध रह गए। सामने विदेश से लौटा उनका बेटा नील खड़ा था। जिसे देखते ही उनकी आँखों से अश्रुधारा बह निकली। बरसों से आँखों में सुख-दुख के सागर को दबाये वो जी रहे थे बस। नील नेअपने पिता केदारनाथ जी के पाँव छुए और उन्हें अपने दोनों हाथों से सँभालता हुआ अंदर ले गया। वो चुपचाप सोफ़े पर बैठ गया उसे शांत और सोच में डूबा देख केदारनाथ जी ने कहा, “चिंता मत कर अब तेरी माँ ख़तरे से बाहर है। अभी अस्पताल में छोटू है। तू पहले गर्म चाय पी ले। अभी बना कर लाता हूँ।” 

ठंड के कारण रजाई से हाथ बाहर भी ना निकालने वाले केदारनाथ जी बेटे के लिए चाय भी बनाने को तैयार थे लेकिन नील ख़ुद ही चाय बनाकर लाया। बाप-बेटे दोनों ने आज अरसे बाद साथ चाय पी थी। केदारनाथजी पहली घूँट पीते ही बोल पड़े, “बेटा! तुझे याद है मैं कम चीनी और साथ कालीमिर्च डली चाय लेता हूँ।” 

नील गहरी साँस ले मुस्कुराता हुआ बोला, “मैं हज़ारों कोस दूर गया तो क्या हुआ बाबा! मुझे आज भी आपके और माँ के साथ बिताया हर पल याद है।” 

बेटे के प्यार को देख केदारनाथ जी की आँखों में चमक व नमी-सी तैर गई थी। दोनों बात कर रहे थे तभी दबे पाँव छोटू घर में आया तो दोनों को पता भी ना चला। छोटू ने पीछे से आकर अनायास ही अपना हाथ नील के कंधे पर रखा तो नील पलटा; सामने छोटू खड़ा था। नील ने उसे गले लगा लिया। दोनों भाई कस कर गले मिल जैसे बरसों की दूरी का पल-पल समेट लेना चाहते थे। दोनों की आँखें मिलने की ख़ुशी के साथ माँ की चिंता एक-दूसरे से कह रहीं थीं। और माँ के इलाज की ख़बर लेने लगा। एक-एक बात अनिल ने बारीक़ी से बताई जिसे सुन नील चिंतित हुआ और कहने लगा, “इतने दिन मुझे क्यों नहीं बताया?” 

छोटू ने बताया, “पहले से अब तबीयत में सुधार है भैया।” 

छोटे भाई को हिम्मत देता देख बोला, “मैं तो तुझे अब तक छोटा ही समझ रहा था लेकिन तूने तो बड़े का काम सँभाल लिया।” 

केदारनाथ जी दोनों बेटों की बात सुन बोले, “नील तेरे विदेश जाने के बाद छोटू ने ही हमें सँभाला। तेरी माँ बार-बार बीमार हुई लेकिन तुझे बताने से छोटू मना करता रहा कि भैया कोसों दूर बैठे चिंता करेंगे।” 

तभी छोटू का फोन बजा फोन उठाते ही बोला, “अभी पहुँचते हैं।” 

छोटू ने मुस्कुराते हुए बताया, “चिंता की बात नहींं है। माँ को होश आ गया। चलो भैया! वे तुम्हें देख कर ख़ुश होगी।” 

केदारनाथ जी को सँभालते हुए दोनों बेटों ने कार में बैठाया। हॉस्पिटल पहुँचते ही देखा वार्ड के कोने के बेड पर लेटी रमा, कमज़ोर व दुर्बल शरीर, गड़ी आँखों से दरवाज़े पर ही टकटकी लगाए थी। वह अपने बेटे का दीदार करने को आतुर थी। उनकी नज़रें अरसे से नील के दरस की प्यासी थीं। अपनी ममता को दबाए उन्होंने 5 वर्ष तो निकाल दिए लेकिन अभी घड़ी का इंतज़ार भी उन्हें लंबा लग रहा था। जैसे ही वार्ड के दरवाज़े में क़दम रखा नील को वह पलक झपकाए बिना देखती रह गयी। नील भी पिता को छोटू के हाथ संभलाकर माँ की और भागा जैसे दो-ढाई साल का बच्चा माँ से कुछ पल दूर रहते ही मिलने को आतुर होकर गले लगता है। यह ममतामयी दृश्य देख सभी द्रवित थे। रमा नील के कभी सिर पर और कभी गाल पर हाथ रख दुलार रही थी। हाथ में लगी कैनुला के कारण दर्द हो रहा था लेकिन आज अपने बेटे से मिलाप के आगे सब भूल चुकी थी। तब कँपकँपाते होंठों से रमा ने कहा, “नी . . . ल अ . . . ब तो तू आ ग . . . या घर च . . . लें।” आँसू भरी आँखों से नील ने हाँ भर दी। 

केदारनाथ जी को लगा अब रमा बिल्कुल ठीक हो जाएगी। जब से नील गया था थोड़ी-थोड़ी बीमार होते आज ये नौबत आ गई थी। लेकिन अब बुढ़ापे की दवा आ गई थी। छोटू को भी माँ ने पास बुलाया और दोनों हाथों से अपने बेटों को आग़ोश में भर लिया। रमा अब इन हाथों को ख़ाली नहीं रखना चाहती थी। रमा का चेहरा दमकता नज़र आ रहा था। उनकी आँखों की विरानी ग़ायब थी। जैसे उन्हें नील का ही इंतज़ार था। नील भी माँ के आग़ोश में ममता को समेटे मुस्कुरा रहा था। केदारनाथ जी को दोनों बेटे रमा के जीवन स्तंभ नज़र आ रहे थे। उन्हें लग रहा था अब रमा और उनका साथ लंबा चलेगा। 

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