दादी का साथ
कथा साहित्य | लघुकथा वन्दना पुरोहित1 May 2022 (अंक: 204, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
प्रिया आज ऑफ़िस से आते ही बड़बड़ा रही थी, “तुम्हारी माँ गाँव से आ रही है। उनका ध्यान कौन रखेगा? आरव भी उनके साथ रहकर गाँव की भाषा सीख जायेगा।”
सुनील बोला, “थोड़े दिनों की बात है प्रिया, भाईसाहब आयेंगे तब माँ को वापिस गाँव भिजवा दूँगा।”
सुनील की माँ कृष्णाजी गाँव से आकर उनके साथ रहने लगी। तभी एक दिन कृष्णाजी टीवी पर अपना पसन्दीदा प्रोग्राम देख रहीं थीं। उसी समय आरव आया और उनके हाथ से रिमोट छीन कर अपना कार्टून चैनल लगाकर देखने लगा। कृष्णाजी ने मना किया लेकिन पोते के आगे उनकी एक न चली। वैसे भी आरव दिनभर टीवी और मोबाइल में ही आँखें गड़ाये रहता था। कृष्णाजी को उसका व्यवहार व बोली किसी कार्टून कैरेक्टर से कम न लगता। वो जैसी भाषा कार्टून चैनल पर सुनता वैसी ही बोलता भी था। सुनिल और प्रिया तो अपनी जॉब में ही व्यस्त थे।
प्रिया थोड़ी देर घर का कामकाज करती तब आरव को मोबाइल थमाकर अपना काम निपटाने में लग जाती। कृष्णा जी आरव के लिए कई बार चिंतित होकर सुनील व प्रिया को कहतीं लेकिन वह अपनी व्यस्तता बता कर फ़्री हो जाते। कृष्णा जी उसके बाल मन पर पड़ रहे प्रभाव से चिंतित थीं।
एक दिन कृष्णा जी ने आरव को अपने पास बुलाया और अपने गाँव की बातें करने लगीं। वहाँ बच्चे कैसे-कैसे खेल खेलते और पुराने ज़माने के बाइस्कोप के बारे में बताया की उसमें वे कैसे फ़िल्म देखती थीं। अब तो रोज़ाना दादी से नई-नई बातें सुनने का शौक़ लग गया। टीवी मोबाइल भी पहले से कम प्रयोग करने लगा था। कभी-कभी कृष्णा जी उसे भक्त प्रह्लाद, ध्रुव, श्रवण कुमार की कहानी सुनातीं। उन कहानियों के सुनने से धीरे-धीरे आरव में परिवर्तन आने लगा। अब आरव हर वक़्त दादी के साथ रहता। रात को सोते वक़्त एक कहानी दादी से सुने बिना न रहता।
उसके व्यवहार में होने वाले परिवर्तन सुनील और प्रिया को भी नज़र आने लगे थे। एक दिन दादी पोते की बातें सुनकर दोनों ने कृष्णा जी से कहा, “वास्तव में दादी दादी ही होती है। माँ आपके साथ ने तो आरव को बदल ही दिया। हम चाहते हैं कि माँ आप गाँव ना जाएँ यही रहें।”
मम्मी पापा की ये बात सुन आरव ख़ुशी-ख़ुशी दादी के गले लग कहने लगा, “दादी अब तोआपके साथ बहुत मज़ा आयेगा। रोज़ाना आपसे कहानी सुनूँगा।”
दादी ने ख़ुशी से पोते को गले लगा लिया।
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