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रज्जो

रेवती ऑफ़िस जाने के लिए जल्दी-जल्दी रसोई का काम निपटा रही थी। आज 9:00 बज गये लेकिन अभी तक काम वाली रज्जो नहीं आयी थी। बेटा रौनक़ भी जल्दी उठ गया और उसे भी अपनी मम्मी रेवती ही पास चाहिये थी। आज अन्य दिनों से ठंड ने भी ज़ोर पकड़ लिया था। रौनक़ की दादी भी कमरे से बाहर नहीं आयी शायद जोड़ों में जकड़न ज़्यादा थी। तबीयत ठीक होती तो वह रेवती से कह रौनक़ को अपनी रजाई में दुबका लेती और वो चुपचाप सोया रहता। रेवती की नज़र बार-बार घड़ी पर जा रही थी तभी डोर बेल बजी दरवाज़ा खोला तो सामने रज्जो अपने 3 साल के बेटे को लेकर खड़ी थी। उसे देखते ही रेवती ग़ुस्से में बोली, “इतनी देर से आयी होऔरआज इसे क्यों लायी हो?” रेवती ने सवाल पर सवाल दाग दिये। 

रज्जो धीरे से बोली, “वो मेमसाब इसे बुख़ार था इसलिए . . .” रज्जो की आधी बात अनसुनी करते हुए रेवती बोली, “चलो, अब जल्दी करो मेरा भी ऑफ़िस का टाइम हो रहा है। रौनक़ को दादी के पास बैठा दो और तुम अपने बेटे को अंदर लॉबी में बैठा दो।” 

रज्जो ने बेटे को लॉबी में अपना शॉल ओढ़ा कर बैठा दिया और रौनक़ को दादी के पास बैठाकर जल्दी-जल्दी काम करने लगी। रेवती तैयार होने के लिए अपने कमरे में चली गयी। थोड़ी देर बाद जब रेवती तैयार होकर कमरे से बाहर लॉबी में आयी तो देखा वहाँ पड़े खिलौने अस्त-व्यस्त थे और रौनक़ की रिमोट वाली कार का दरवाज़ा व पहिया टूटा पड़ा था। खिलौने के कार्टन में रज्जो का बेटा खिलौने ढूँढ़ रहा था। तभी पास जाकर रेवती ने रज्जो को ज़ोर से आवाज़ लगायी, “रऽऽज्जो . . .” रेवती की आवाज़ सुन रज्जो का बेटा खिलौने छोड़ चुपचाप खड़ा हो गया उसके चेहरे पर डर साफ़ दिखाई दे रहा था। रेवती की तेज़ आवाज़ सुन रज्जो भी काम छोड़ बेटे की चिंता में भागते हुए आयी। देखा तो रेवती ग़ुस्से में कार को हाथ में लिये बैठी थी। रज्जो कुछ पूछती उससे पहले ही बोल पड़ी, “तुम्हारे बेटे की औक़ात नहीं है 10रुपये के खिलौने की और 2000 की रिमोट कार तोड़ दी। पिछले महीने ही रौनक़ के बर्थडे पर उसके पापा रिमोट कार लाये थे।” 

रेवती के शब्द सुनते ही रज्जो ने अपने बेटे के दोनों हाथ पकड़ दो तमाचे बेटे के गाल पर लगाये। और रेवती से हाथ जोड़कर बोली, “सॉरी मेमसाहब मुझसे ही ग़लती हो गयी इसे खिलौनों के पास बैठा दिया।”

रेवती घूर कर उसे देखती हुई कमरे से बाहर निकल गयी। रज्जो का बेटा ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा। रौनक़ की दादी भी यह सब सुन लॉबी में आयी तो देखा रज्जो की आँखें भीगी थीं और वो बेटे को सीने से लगा चुप करा रही थी। यह देख दादी समझ गयी कि आज फिर रज्जो को अपमानित किया होगा। ग़ुस्से में आकर रेवती अपना-आपा खो देती है। रेवती के ऑफ़िस जाने के बाद दादी ने रज्जो को चाय बिस्किट दिये कि बेटे को खिला दे लेकिन रेवती बोली, “खा के आया है।” दादी ने ज़बरदस्ती रज्जो व बेटे को चाय पिलायी। गुमसुम-सी रज्जो काम निपटा कर बच्चे को लेकर चली गयी। 

दूसरे दिन भी रज्जो बच्चे की तबीयत ठीक ना होने के कारण उसे साथ लेकर आयी। बच्चे के हाथ में दो गुब्बारे डंडियों पर बँधे थे जो हिलाने पर छम-छम बोलते थे। उन्हें देख आज रौनक़ उन गुब्बारों से खेलने के लिए मचल उठा। आज रेवती रज्जो से कुछ न बोली। रेवती बार-बार रौनक़ को गुब्बारों की बजाय सॉफ़्ट टॉय थमा रही थी लेकिन रौनक़ को तो गुब्बारे ही चाहिए थे; वो रोये जा रहा था तभी रज्जो ने बेटे से एक गुब्बारा लेकर उसको दे दिया। रौनक़ रोता-रोता ख़ुशी से खेलने लगा। रेवती अब कमरे में एक पल भी ना रुक पायी और बाहर निकल गयी। वहीं बैठी दादी को आज स्वाभिमानी रज्जो के 10 रुपये के गुब्बारे केआगे रौनक़ के महँगे खिलौने सस्ते लग रहे थे। दादी रौनक़ व रज्जो के बेटे को साथ खेलता देख मुस्कुरा रही थी। 

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