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हवा जीती सूरज हारा

सदियों बाद एक बार फिर हवा और सूरज मुक़ाबले में आमने-सामने थे। इस बार सूरज ने टॉस जीता; और पहले आक्रमण करने का फ़ैसला किया। 

इस बार उसके आक्रमण के निशाने पर, एक जनसभा को सम्बोधित कर रहे एक खद्दरधारी नेता थे। जिनके सफ़ेद कपड़ों को उतरवाने वाले को विजेता का ख़िताब मिलने वाला था। पूर्व विजेता सूरज के ज़ोरदार आक्रमण से नेताजी पसीने-पसीने हो रहे थे। जिससे वह भाषण देते हुए बार-बार मंच पर पानी मँगवा रहे थे; पर वह जनता के सामने अपने सफ़ेद वस्त्र उतारने को क़तई तैयार न थे—जो पसीने से तर होकर उनके बदन से चिपक गए थे। 

जनता भी नेताजी के लोकलुभावन वायदों की ख़ुराक के कारण ज़बरदस्त सहनशक्ति का परिचय दे रही थी। जिससे सूरज को हथियार डालने पड़े; और आक्रमण की बारी हवा की आयी। 

हवा के ज़बरदस्त आक्रमण से शामियाने उड़ने लगे। नेताजी के मुँह के आगे रखा माइक दूर जा गिरा। लोग घबराकर इधर-उधर दौड़ने लगे। जिससे भगदड़ मच गयी। नेताजी के अंगरक्षक फ़ुर्ती से नेताजी को वहाँ से निकाल कर ले गए।

रेस्टहाउस के सामने गाड़ी से उतरते हुए नेताजी बोले, “ओ रामसिंह! जल्दी से कोई हल्का-सा सूट निकाल दे . . . इस गाँधी की खादी ने मेरी चमड़ी ही खा ली।” 

कुछ ही देर बाद, नेताजी आरामदायक सूट पहनकर रेस्टहाउस में टहल रहे थे। और हवा जीत की ख़ुशी में क़हर बरपा रही थी। 

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