हर गली के छोर पर चलते हैं ख़ंजर
शायरी | ग़ज़ल सुनील कुमार शर्मा1 Aug 2022 (अंक: 210, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
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हर गली के छोर पर चलते हैं ख़ंजर
जज बने फिरते हैं बापू के वो बंदर।
धन के बल पर मौज करते ये लुटेरे
चाहे बाहर हो कोई या जेल अंदर।
जेबकतरों से तो बच सकते नहीं हैं
आप दिल्ली में हो चाहे पोरबंदर।
मैंने देखे हैं बग़ल में रख छुरी को
मंदिरों में घूमने वाले कलंदर।
हर जगह, हर मोड़ पर लूटे गए हो
और कितना जिगरा है, जो तेरे अंदर।
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