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कर्मयोगी 

उसने वर्षों तक एक पैर पर खड़े होकर कड़ी तपस्या की। जिससे भगवान प्रकट हुए और बोले, “वत्स! वर माँगो।” 

वह हाथ जोड़कर बोला, “क्षमा करना प्रभु! मुझे वर नहीं चाहिए।” 

भगवान हैरान होकर प्रश्नवाचक निगाहों से उसके चेहरे की तरफ़ देखने लगे। वह भगवान की निगाहों का तात्पर्य समझकर, उनकी जिज्ञासा को शांत करने के लिए फिर नम्रता से बोला, “भगवन! मुझे इसलिए वर नहीं चाहिए क्योंकि; मुझे आप के दर्शन करने में अब जो आनंद प्राप्त हुआ है वह आंनद अगर आप के दर्शन बिना किसी परिश्रम के सहजता से हो जाते तो कभी ना मिलता। अतः मैं जीवन की हर आवश्यकता को कड़ी मेहनत से हासिल करना चाहता हूँ, ना कि किसी देवता के द्वारा दी गयी वरदान की शक्ति से।” 

युगों में पहली बार ऐसे कर्मयोगी के दर्शन करके, अपने आप को धन्य समझकर भगवान देवलोक को प्रस्थान कर गए। 

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