क्या सच्चा था?
काव्य साहित्य | कविता सुनील कुमार शर्मा15 Sep 2025 (अंक: 284, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
जब ज़िन्दा था,
कहते थे—
इसे मौत भी नहीं आती।
जब आ गयी,
तो कहते हैं—
आदमी बहुत अच्छा था।
अब पता नहीं कितने दिनों तक
यह लोगों की ज़ुबान पर
अच्छा बना रहेगा।
अथवा इसे अच्छा या बुरा
साबित करने के लिए, इन
लोगों में बहस छिड़ जाएगी।
ऐसे ही लोगों को एक दिन
आसमान पर बादलों में
एक सिर कटे, उलटा लटके,
मेमने की आकृति दिखाई दी।
सभी चिल्लाए—
हलाल है, हलाल है।
वक़्त गुज़र जाने के बाद,
बहुत से लोग बोले—
नहीं, नहीं यह तो
नमक हराम मीर जाफर
की औलाद है।
समझ में नहीं आता,
जो अब है वो सच है।
या जो गुज़र गया,
वो सच्चा था।
जिसे पूर्वाग्रह से ग्रस्त
चन्द बुद्धिजीवीयों ने
अपनी किताबों के पन्नो में
सँजोकर रखा था।
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