हरजाना
कथा साहित्य | लघुकथा सुनील कुमार शर्मा1 Jun 2022 (अंक: 206, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
जब फ़तु की मुर्गी का गला मरोड़कर, थैले में डालकर ले जाते हुए रमलु रँगे हाथों पकड़ा गया। फ़तु ने तुरंत गाँव के नीम के पेड़ के नीचे पंचायत बुला ली।
काफ़ी बहस के बाद जब पंचायत हरजाने तक पहुँची तो फ़तु बोला, “इससे पहले भी मेरी चार मुर्गियाँ चोरी हो चुकीं हैं, उन्हीं के हिसाब से रामलु पर हरजाना लगाया जाये।”
जिसे सुनकर पंचायत ने रामलु पर दो हज़ार रुपए हरजाना लगाने की घोषणा की।
इसे सुनकर रामलु हाथ जोड़कर खड़ा हो गया, “. . . इतने पैसे तो मैं नहीं दे सकता।”
एक पंच बोला, “इस ग़रीब आदमी पर एक हज़ार हरजाना ही काफ़ी है।”
पर रामलु इससे भी संतुष्ट नहींं हुआ। फिर कोई और बोला, “इस बेचारे पर पाँच सौ रुपए हरजाना ही बहुत है।”
यह सुनकर जलाभुना फ़तु बोला, “. . . ये पाँच सौ रुपये भी छोड़ दो।”
जिसे सुनते ही सारी पंचायत एक साथ बोली, “फ़तु ठीक कह रहा है . . . इस पर क्या हरजाना लगाना? इसकी पंचायत में जो बेइज़्ज़ती हो गयी, इतना ही काफ़ी है,” यह कहकर पंचायत उठ गयी।
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