उनसे खाए ज़ख़्म जो नासूर बनते जा रहे हैं
शायरी | ग़ज़ल सुनील कुमार शर्मा1 Mar 2023 (अंक: 224, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
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उनसे खाए ज़ख़्म जो नासूर बनते जा रहे हैं
ग़ैरों के शानो पर रख सर वो तो क़स्में खा रहे हैं
मेरे घर के सामने से ही तो गुज़रा है वो मंज़र
यह तेरा कोई वहम हैं वो मुझे समझा रहे हैं
उनकी आँखों में से जो दरिया बह रहा है क्या पता है
मगरमच्छी अश्क हैं या सच में वो पछता रहे हैं
किसका कैसे क्यों हुआ है दिनदहाड़े क़त्ल ये सब
मेरे क़ातिल मुझसे ही तो पूछने को आ रहे हैं
हर किसी की ज़िन्दगी तो एक ही मायाजाल है
जिसको हम सब अपने-अपने ढंग से सुलझा रहे हैं
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