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कथा साहित्य | लघुकथा सुनील कुमार शर्मा15 Sep 2021 (अंक: 189, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
ताऊ भरथु जवानी से ही ऐसे दल का समर्थन करते रहे, जिसका गाँवों में कोई जनाधार नहीं था, जिससे हर चुनाव के बाद ताऊ को मन मसोसकर रह जाना पड़ता था। लेकिन वक़्त ने पलटा खाया, इस बार उस दल का उम्मीदवार बिरजूदास चौधरी भारी बहुमत के साथ विजयी हुआ। ताऊ भरथु की तो ख़ुशी का ठिकाना ना रहा। वह अपने हाथों से तैयार किये रंग-बिरंगे फूलों का हार लेकर, नवनिर्वाचित विधायक बिरजू नाथ चौधरी के स्वागत के लिए गाँव के पास से गुज़रने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग की ओर चल पड़ा; क्योंकि मतगणना केंद्र से जीतकर लौट रहे बिरजूदास चौधरी का क़ाफ़िला इसी रास्ते से गुज़रने वाला था। परन्तु ताऊ भरथू यह देखकर हैरान रह गया कि बिरजूनाथ चौधरी के घोर विरोधी भी हाथों मे नोटों के हार लिए वहाँ खड़े, “बिरजू दास चौधरी ज़िंदाबाद!“ नारे लगा रहे थे।
इस दल के समर्थकों की इतनी बड़ी भीड़ ताऊ भरथु ने पहले कभी नहीं देखी थी। काफ़ी देर के बाद चौधरी बिरजू दास की गाड़ियों का क़ाफ़िला नज़र आया, सड़क पर जाम लग गया। बड़ी संख्या में हाथों मे हार लिए हुए लोग, खुली गाड़ी में खड़े चौधरी बिरजूदास चौधरी की तरफ़ दौड़ पड़े। ताऊ भरथु लड़खड़ाते क़दमों से जैसे ही उस गाड़ी की तरफ़ बढ़ा, उसे किसी का ऐसा ज़ोरदार धक्का लगा कि वह ऊँचे राजमार्ग से लुढ़कता हुआ नीचे गहरी खाई में जा गिरा। और उसकी आँखों के आगे अँधेरा छा गया। जब उसे होश आया तो उसने उठकर सड़क की तरफ़ देखा; उसके प्रिय नेता का क़ाफ़िला आगे निकल चुका था। फूलों का वह हार अब भी उसने कसकर पकड़ा हुआ था।
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पाण्डेय सरिता 2021/09/16 11:44 AM
इसी को दुनिया कहते हैं। बहुत खूब