निरुत्तर
कथा साहित्य | लघुकथा सुनील कुमार शर्मा1 Mar 2023 (अंक: 224, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
उसने ज़िन्दगी मेंं कभी शराब नहीं पी थी। एक रात वह अपनी पत्नी से झगड़कर, शराब पीने के इरादे से एक बदनाम दारू के अड्डे की और चल दिया। जैसे ही, वह बिरजू उस्ताद वाले दारू के अड्डे में दाख़िल हुआ, अपने मोहल्ले के प्रसिद्ध शराबी घोंचूमल से टकरा गया।
घोंचूमल लड़खड़ाकर, झूमते हुए बोला, “अरे भाई! मैंने तो पी रखी है, क्या तूने भी पी रखी है? जो मुझे ठोकरें मार रहा है।”
“क्या बकवास करता है, शराब भी कोई पीने की चीज़ है . . . पीना है तो दूध पियो, लस्सी पियो, फलो का जूस पियो, क्यों शराब पी-पी कर अपने शरीर का नाश कर रहे हो। उधर तुम्हारे बीवी-बच्चे पैसे-पैसे को तरस रहे है . . . और तुम शराब के लिए पैसे बर्बाद कर रहे हो . . . अभी कल ही तुम्हारी पत्नी मेरे पास रो-रोकर गयी है . . .?”
वह अपनी आदत के अनुसार लम्बा-चौड़ा भाषण झाड़ता चला गया; पर जब घोंचूमल ने उसकी बात बीच मेंं काटते हुए पूछा, “मैं तो महाशराबी, कबाबी हूँ, मैंने शराब पी-पी कर अपना घर बर्बाद कर लिया है; पर भाईसाहब! मुझे यह बताइये, आप इतनी रात में यहाँ क्या गंगाजल पीने के लिए आये हैं?”
इस अचानक हुए हमले से वह सकपका गया, और निरुत्तर सा होकर बग़लें झाँकने लगा।
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