कछुआ फिर जीत गया
कथा साहित्य | सांस्कृतिक कथा सुनील कुमार शर्मा1 Mar 2022 (अंक: 200, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
कछुए और ख़रगोश में फिर दौड़ की शर्त लग गयी थी। कछुए ने भी चैलेंज कर दिया था कि इस बार भी जीत कछुए की ही होगी। ख़रगोश भी सतर्क हो गया था कि उसके परदादा ने दौड़ के बीच में जो आराम करने की ग़लती की थी, उसे वह नहीं दोहराएगा। वर्षों बाद नए युग में होने वाली कछुए और ख़रगोश की दौड़ को प्रायोजित करने के लिए बड़ी-बड़ी कंपनियाँ उठ खड़ी हुई थीं। क्योंकि इस मुक़ाबले को देखने के लिए हर कोई उत्सुक था। पर मैदान में इस मुक़ाबले को आम आदमी देख नहीं सकता था। चूँकि इस दौड़ के लिए टिकट ख़रीदना हर किसी के बस की बात नहीं थी। जिससे इसे प्रायोजित करने वाले टीवी चैनलों की तरफ़ सबका ध्यान था।
ज्यों-ज्यों दौड़ का दिन नज़दीक आता जा रहा था। सट्टा बाज़ार भी गरम होता जा रहा था। ज़्यादातर ख़रगोश पर ही दाँव लगा रहे थे। जिससे कछुए का जीतना स्टोरियों के लिए ज़्यादा फ़ायदेमंद था।
आख़िर मुक़ाबले का वो दिन आ ही गया जिसका लोगों को बेसब्री से इंतज़ार था। मुक़ाबला शुरू हुआ कछुए ने अभी सरकना शुरू ही किया था कि ख़रगोश ने लगभग हवा में उड़ते हुए दौड़ पूरी कर दी। उसने तो पीछे देखने की भी कोशिश नहीं की। कछुए ने जैसे-तैसे बड़ी देर बाद वह दौड़ पूरी की लोग यह देखकर हैरान थे कि कछुए ने क्या सोचकर ख़रगोश को चैलेंज किया था? परन्तु थोड़ी देर बाद जब कछुए को विजेता घोषित किया गया तब लोगों की समझ में सब माजरा आ गया। क्योंकि ख़रगोश बेचारा ’डोप टैस्ट’ में फ़ेल हो गया था।
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