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फ़ालतू 

“आप इस बछड़े को गौशाला में रखने का क्या लोगे?”उस बछड़े के मालिक ने गौशाला के गेट के पास कुर्सी पर बैठे एक वृद्ध से पूछा। 

“. . . एक हज़ार रुपया,” उस वृद्ध ने लापरवाही से उत्तर दिया। 

“कुछ कम नहीं हो सकता . . . ?”

“नहीं भाई! नहीं . . . पहले हो गौशाला में जगह नहीं है . . . आप बछड़ा ले ही आये हो; इसलिए मैंने आपको ना नहीं की।” 

“नहीं-नहीं, आप यह पकड़िये एक हज़ार रुपया . . . मैंने तो वैसे ही पूछ लिया था,” वह एक हज़ार रुपए के साथ बछड़े की रस्सी उस वृद्ध को पकड़ाते हुए बोला। 

वह वृद्ध जैसे ही, उस बछड़े की रस्सी पकड़कर ज़ोर से खींचते हुए, गौशाला में दाख़िल हुआ, अंदर से ज़ोर से आवाज़ आयी, “बाबा जी! आपने यह बछड़ा क्यों ले लिया? यहाँ तो पहले ही बछड़े फ़ालतू हैं।”

“अरे क्यों ज़ोर से चिल्ला रहा है . . . जो फ़ालतू है, उसे बाहर निकाल दे,” उस वृद्ध का रोषभरा स्वर सुनाई दिया।

उस बछड़े के अंदर जाते ही, दूसरा फ़ालतू बछड़ा बाहर कर दिया गया। जिसे देखकर वह आदमी अपने-आप को ठगा-सा महसूस करने लगा। क्योंकि वह समझ गया था दो-चार दिन बाद उसका बछड़ा भी फ़ालतू हो जायेगा। 

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टिप्पणियाँ

पाण्डेय सरिता 2022/04/11 09:35 PM

उफ् आज ऐसी स्थिति है बछड़े की

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