फ़ालतू
कथा साहित्य | लघुकथा सुनील कुमार शर्मा1 Apr 2022 (अंक: 202, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
“आप इस बछड़े को गौशाला में रखने का क्या लोगे?”उस बछड़े के मालिक ने गौशाला के गेट के पास कुर्सी पर बैठे एक वृद्ध से पूछा।
“. . . एक हज़ार रुपया,” उस वृद्ध ने लापरवाही से उत्तर दिया।
“कुछ कम नहीं हो सकता . . . ?”
“नहीं भाई! नहीं . . . पहले हो गौशाला में जगह नहीं है . . . आप बछड़ा ले ही आये हो; इसलिए मैंने आपको ना नहीं की।”
“नहीं-नहीं, आप यह पकड़िये एक हज़ार रुपया . . . मैंने तो वैसे ही पूछ लिया था,” वह एक हज़ार रुपए के साथ बछड़े की रस्सी उस वृद्ध को पकड़ाते हुए बोला।
वह वृद्ध जैसे ही, उस बछड़े की रस्सी पकड़कर ज़ोर से खींचते हुए, गौशाला में दाख़िल हुआ, अंदर से ज़ोर से आवाज़ आयी, “बाबा जी! आपने यह बछड़ा क्यों ले लिया? यहाँ तो पहले ही बछड़े फ़ालतू हैं।”
“अरे क्यों ज़ोर से चिल्ला रहा है . . . जो फ़ालतू है, उसे बाहर निकाल दे,” उस वृद्ध का रोषभरा स्वर सुनाई दिया।
उस बछड़े के अंदर जाते ही, दूसरा फ़ालतू बछड़ा बाहर कर दिया गया। जिसे देखकर वह आदमी अपने-आप को ठगा-सा महसूस करने लगा। क्योंकि वह समझ गया था दो-चार दिन बाद उसका बछड़ा भी फ़ालतू हो जायेगा।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
लघुकथा
- अंधा
- असर
- आग
- आसान तरीक़ा
- ईमानदार
- ईर्ष्या
- उपअपराध बोध
- एजेंट धोखा दे गया
- कर्मफल
- कर्मयोगी
- काफ़िर
- किराया
- केले का छिलका
- खरा रेशम
- गारंटी
- चाबी
- चूहे का पहाड़
- झंडूनाथ की पार्टी
- ट्रेनिंग
- डॉक्युमेंट
- तारीफ़
- दया
- दुख
- नाम
- निरुत्तर
- नफ़ा-नुक़्सान
- पानी का घड़ा
- फ़ालतू
- बहादुरी
- बहू का बाप
- बादशाह और फ़क़ीर
- बिजली चोर
- बेक़द्री
- भगवान के चरणों में
- भरोसा
- भिखारी का ऋण
- भीख
- मोल ली मुसीबत
- रात का सफ़र
- रावण का ख़ून
- लाचार मूर्तियाँ
- लड़ाई
- लड़ाई - 02
- समस्या
- सहायता
- साँप
- स्वागत
- हरजाना
- हवा जीती सूरज हारा
- क़ुसूर
ग़ज़ल
- उनसे खाए ज़ख़्म जो नासूर बनते जा रहे हैं
- किस जन्म के पापों की मुझको मिल रही है यह सज़ा
- जा रहा हूँ अपने मन को मारकर यह याद रखना
- तुम ने तो फेंक ही दिया जिस दिल को तोड़ कर
- तेरी उस और की दुनियाँ से दूर हूँ
- तेरे घर के सामने से गुज़र जाए तो क्या होगा
- दिल की दिल में ही तो रह गई
- मेरे अरमानों की अर्थी इस तरह से ना उठाओ
- मैं कभी साथ तेरा निभा ना सका
- लुट गयी मेरी दुनिया मैं रोया नहीं
- वो आहें भी तुम्हारी थी ये आँसू भी तुम्हारे हैं
- हम तो तन्हाई में गुज़ारा कर गए
- हर गली के छोर पर चलते हैं ख़ंजर
कविता
सांस्कृतिक कथा
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
पाण्डेय सरिता 2022/04/11 09:35 PM
उफ् आज ऐसी स्थिति है बछड़े की