पुल गिर गया . . .
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी संजीव शुक्ल15 Nov 2022 (अंक: 217, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
“दद्दा सुना पुल गिर गया!” रामसहारे ने कमरे में घुसते ही ब्रेकिंग न्यूज़ दी।
दद्दा मैचिंग की सदरी खोजते हुए ही पूछा, “कहाँ?”
“अरे वही जिसका आप परसों उद्घाटन करने वाले थे,” रामसहारे ने घबड़ाते हुए बताया।
“कोई मरा-मराया तो नहीं?”
“हाँ, सुनने में आया है कि कुछ मरे हैं।”
“लगता है कि माल बढ़िया नहीं लगाया,” दद्दा ने अपने कुर्ते की सलवटें सही करते हुए बताया।
“और हाँ, विरोधी मीडिया भी पहुँच गया है दद्दा वहाँ,” रामसहारे ने अपडेट करते हुए बताया।
“ओह्ह इसको चुनाव के समय ही गिरना था,” दद्दा कुछ चिंतित से हुए। “ख़ैर ये अपने वाले ससुरे पहुँचे कि नहीं?”
“कौन दद्दा?” रामसहारे ने छूटते ही पूछा।
“अरे मीडिया वाले और कौन यार! तुमको तो हर बात बतानी पड़ती है। उनको बचाव के काम पर लगा दो। इसका इलेक्शन पर असर न पड़ने पाए। ये कमबख़्त विरोधी इसका फ़ायदा उठाने की कोशिश करेंगे।”
“दद्दा बचाव कार्य वाली टीम तो पहुँच चुकी है मौक़े पर। जो निकाले गए हैं, उनमें कुछ ज़्यादा घायल हैं, उन्हें तत्काल अस्पताल में भर्ती करवा दिया गया है। अस्पताल में बेड कम थे, सो कुछ पहले से भर्ती सर्दी-बुखार वाले मरीज़ों को डिस्चार्ज कर दिया गया है। ससुरे कई महीनों से स्प्रिंग वाले बेड पर आराम फ़रमा रहे थे। स्प्रिंग तक ढीली हो गईं थीं। इमरजेंसी के लिए कुछ मरीज़ों से अपनी खटिया ख़ुद लाने के लिए कहलवा दिया है,” रामसहारे दद्दा के पी.आर.ओ. वाले रौ में आ चुके थे।
“अरे वो वाला बचाव नहीं, ऊ तो सब ठीकै है। हमारा कहने का मतलब अपने मीडिया वालों को अपने बचाव पर लगा दो।
“ऐसा करो जो-जो मीडिया हेड हों उनको अभी अर्जेंट मीटिंग में बुला लो। अभी दो घण्टे हैं, अपने पास। फिर रैली के लिए निकलना भी है।”
“जी दद्दा बिलकुल।” रामसहारे आज्ञापालन के लिए कमरे से बाहर निकल गए। इधर दद्दा सज-धज के घटना की विस्तृत जानकारी के लिए न्यूज़ चैनल खोल लिए। उस पर बताया जा रहा था कि पुल पर अचानक भीड़ बढ़ जाने के कारण पुल टूट गया। एक आध चैनल वाले एक्ट ऑफ़ फ़्रॉड की सनसनीखेज़ ख़बर भी चला रहे थे। दद्दा ने घबड़ाकर टीवी बंद कर दिया।
तभी रामसहारे नमूदार हुए।
“दरअसल ग़लती अपने से ही हुई है दद्दा,” रामसहारे ने राज़ की बात बताने वाले अंदाज़ में बात पेश की। “हमको पुल का ठेका उस मिठाई बनाने वाले हलवाई को नहीं देना था।”
दद्दा ने तुरंत अपनी नाख़ुशी ज़ाहिर की।
“अरे मिठाई वाला है तो का इसका मतलब उसको कुछ आता-जाता नहीं। आख़िर उसका अपना भी तो घर है। उसको बनाने के लिए क्या पीडब्ल्यूडी वाले आए थे? जब वह अपना घर बना सकता है तो पुल क्यों नहीं? और फिर बनाते तो मिस्त्री ही हैं, कोई इंजीनियर ख़ुद तो उतर नहीं जाते बनाने।
“अरे कुछ लिहाज़ नाम की भी कोई चीज़ होती है कि नहीं। पिछले इलेक्शन की कित्ती मदद की थी अपनी, कुछ पता है तुम्हें। दूसरा वाला ससुरा विरोधियों के ख़ेमे का था। कुछ राजनीतिक उसूल भी तो होते हैं।” दद्दा ग़ुस्सा-से गये। पर अगले क्षण विरोधियों के हो-हल्ला का ख़्याल आते ही वह संयत हो उठे। वह बोले, “हाँ फिर भी इत्ता कमीशन नहीं खाना चाहिए था उसे। बताओ तो ऊपर वाले का कोई डर ही नहीं रह गया है।”
ऊपर वाले से आशय उनके ख़ुद के द्वारा एक्शन लिए जाने से था। दद्दा यथार्थ में उतर गए।
“ख़ैर अब तो जो होना था हो चुका।”
तभी फोन की घण्टी बजी, पता चला पालतू मीडिया के लोग आ चुके हैं। साहब का इंतज़ार हो रहा है। रामसहारे ने दद्दा को चलने के लिए आग्रह किया।
दद्दा के पहुँचते ही सब एकबारगी उनके पैरों की ओर लपके।
दद्दा ने कहा ठीक है, “बैठो-बैठो। ज़रूरी बात करनी है आपसे।
“वो क्या है कि आज जो पुल गिरा है, उसके चलते अपनी किरकिरी हो रही है। भई इसको सँभालना है।” दद्दा ने कुछ गहरे टिप्स दिए। सबने मुस्कुराकर वैसा ही करने का आश्वासन दिया और विदा ली।
थोड़ी देर में टीवी पर न्यूज़ चलने लगी नेताजी ने इस हृदयविदारक घटना पर गहरा दुख व्यक्त किया है। उन्होंने कहा है कि घायलों का त्वरित इलाज किया जाय। घटना के ज़िम्मेदार लोगों को किसी भी क़ीमत पर बख़्शा नहीं जाएगा। सभी पीड़ितों को तत्काल तीन-तीन लाख दिए जाएँगे। इसके बाद एंकर ने बताया कि बार-बार चेतावनी देने के बावजूद लोगों ने उसको अनसुना कर पुल पर सेल्फ़ी लेने के लिए इकट्ठे होने लगे। पुल की सामर्थ्य से ज़्यादा लोगों के इकट्ठा होने से पल टूटा। कुछ लोग जानबूझकर उसके पिलर को हिला रहे थे जिसके चलते यह दुःखद घटना घटी। लोग यह भी नहीं सोचते कि उनकी ज़रा-सी भी लापरवाही उनको मौत की तरफ़ ले जा सकती है।
दद्दा ने ख़बर सुनकर रामसहारे की तरफ़ गहरे अंदाज़ में देखा और अगली मीटिंग के लिए निकल लिए।
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अशोक गौतम 2022/11/15 01:32 PM
सिस्टम की परतें खोलता व्यंग्य । व्यंग्यकार को बहुत बहुत बधाई।