राजनीति के नमूने
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी संजीव शुक्ल1 Apr 2021 (अंक: 178, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
ये ट्रम्पवा भी बड़ा बागड़बिल्ला निकला। बताओ तो भला, सत्तारी घूम रहे अपने पिट्ठुओं को इसने अमेरिकी संसद पर चढ़ा दिया। पठ्ठा अपनी हार मानने तक को तैयार नहीं!!!
तब तो पूरे चार साल नाच-गाना किया और कंधा उचकाते हुए हमारे वाले के साथ तमाम लाइव शो किया; और अब ये सब . . .
अरे इत्ता ही अपनी हार से चिढ़ थी, तो ईवीएम में ही कुछ मेहनत कर लिए होते। हम तो इसके लच्छन तभी से जान गए थे जब यह भारत आया था, खैर हमें तो अमेरिका का आभारी ही होना चाहिए कि उसने जगत को एक ऐसा आइटम दिया है, जिसने पूरे चार साल तक विश्व का मनोरंजन किया और अब भी कर रहा है।
वैसे ये बग्घा ट्रम्प शुरू से ही लकड़बग्घा था। इसकी चालाकी तो तब समझ में आई जब इसने अपने सारे काम निपटाने के बाद हमको ट्विटर हैंडल पर अनफॉलो कर दिया था। हम हमेशा विश्वास में ही लुटे!! दरअसल इसने अपने बीवी-बच्चों से वायदा किया था कि हम तुम सबको ताजमहल दिखवाएँगे। ख़ूब जी भरके वहाँ फोटू-वोटू खिंचवा लेना। सो उसने इसी बीच भारत-यात्रा का प्रोग्राम सेट कर लिया। हम लोग "अतिथि देवो भव" के झाँसे में आ गये। खूब आवभगत किये। पूरी फैमिली ने ताजमहल की एक-एक दीवार पाँच-पाँच बार देखी। वे सब के सब ताजमहल देखने में बिजी थे और हम 'नमस्ते ट्रम्प' में। हम लोग समझ रहे थे कि बंदा हमको हमारी सफल विदेश नीति का सर्टीफिकेट देकर ही जाएगा, और हो न हो पाकिस्तान को तो जरूर गरियैबे करेगा।
पर उसने नमस्ते लेने के सिवाय कुछ न किया, न कहा।
उल्टे यहाँ से जाकर बंदे ने कोरोना से निपटने के लिए भारत से कठिन स्पेलिंग वाली दवा भी माँग ली; हमने मानवता दिखाते हुए एक खेप दे भी दी। हम लोग ठहरे निश्छल आदमी! हम तो बेचैन थे अपनी दवाओं का असर जानने के लिए; उधर से जयजयकार की आवाज सुनने के लिए। हम तो मीना कुमारी वाली स्टाइल में गाने भी लगे थे कि:
"आज हम अपनी दवाओं का असर देखेंगे" . . .
पर अहसान मानना तो दूर पट्ठा उल्टे चिल्लाने लगा कि बेकार ही दवा मँगा ली, यह तो फायदा ही नहीं कर रही। बताइये, यह तो बहुतै बड़ा वाला है . . . खैर कोई बात नहीं, धोखा ही सही, जात तो पहचानी गई। आगे के लिए सीख मिल गयी। जो हुआ सो हुआ, अब आगे से अपने इमोशंस को विदेश नीति पर हावी न होने देंगे।
और हाँ, एक और सावधानी बरतनी पड़ेगी और पड़ेगी ही, जब ऐसे-ऐसे लोग आएँगे . . .
तो सावधानी यह है कि जो भी यहाँ आए, चाहे वह जित्ता अपना सगा हो, उससे पहले यह लिखा-पढ़ी करवा लो कि ताजमहल देखने के कम से कम तीन साल तक फेसबुक से अनफ्रेंड और ट्विटर हैंडल से अनफॉलो नहीं करोगे। और अगर आनाकानी करे तो वही दिल्ली में यमुना के दो-तीन चक्कर लगवाकर वापस भिजवा दें।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
60 साल का नौजवान
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी | समीक्षा तैलंगरामावतर और मैं लगभग एक ही उम्र के थे। मैंने…
(ब)जट : यमला पगला दीवाना
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी | अमित शर्माप्रतिवर्ष संसद में आम बजट पेश किया जाता…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
- अजब-ग़ज़ब निर्णय
- अपडेटेड रावण
- अपराध दर अपराध
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बचाया जाए
- आत्मसाक्षात्कार का ट्रेंड
- इस हरे-भरे देश में चारे की कमी नहीं है, चाहे कोई कितना भी चरे
- उनको अखरता है रावण का जलना
- उनको समर्पित
- एक अदद पुरस्कार की ज़रूरत
- एक पाती पत्रकार भाई के नाम
- एक लिहाज़ ही है जो लिहाज़ है
- कविता में भारी उछाल पर पढ़ने और सुनने वालों का भीषण अकाल
- कश्मीर फ़ाइल की फ़ाइल
- काँइयाँ मेज़बान
- कालीन का जनतंत्रीकरण
- गर्व की वजह
- गर्व की वजहें
- चुनावी कुकरहाव
- चुप्पियों के बोल
- चेले जो गुरु निकले
- दशहरा पर पंडित रामदीन की अपील
- दीवारों की अहमियत
- धर्म ख़तरे में है
- धर्म ख़तरे में है
- नासमझ मजदूर
- पुल गिर गया . . .
- पुलिया के सौंदर्य के सम्मोहन के आगे बेचारे पुल की क्या बिसात!!!
- बजट की समझ
- मंत्री जी की चुप्पी
- यक्ष और राजनीतिक विश्लेषक
- यू टर्न
- राजनीति के नमूने
- रावण की लोकप्रियता
- वे और उनका नारीवाद
- शर्म से मौत
- सरकार तुम्हारी जय होवे
- सोशल मीडिया और रचना का क्रियाकरम
- हम फिर शर्मसार हुए
- ख़ुशियाँ अपनी-अपनी
लघुकथा
ऐतिहासिक
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
Rajnandan Singh 2021/04/10 01:45 PM
सुंदर व्यंग्य