होनहार युवराज
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी संजीव शुक्ल1 Jul 2025 (अंक: 280, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
आज दरबार की अति गोपनीय मीटिंग के लिए राजा पूरे आधे घंटे लेट हो गए थे, सो वे बड़े स्पीड में चल रहे थे। इसी तेज़ी के चक्कर में तलवार उनके दोनों पैरों के बीच में आ गई। वे गिरते-गिरते सँभाले गए। अंगरक्षकों ने उन्हें रोक लिया।
वे जब-जब गिरने को होते, कोई न कोई उन्हें गिरने से रोक ही लेता। राजा होने के यही सब फ़ायदे थे। लेकिन कई बार तो राजा ख़ुद ही गिरना चाहते। कभी सहानुभूति बटोरने के चक्कर में, तो कभी आचरण से, पर न गिर पाते।
चूँकि सार्वजनिक जगहों पर शुभेच्छुओं की उपस्थिति के चलते मनमाफ़िक गिरना सम्भव नहीं था, इसलिए वे या तो अकेले में गिरते या फिर भरोसेमंद साथियों की मौजूदगी में गिरना पसंद करते। नीतिविषयक मामलों में वे मैक्यावली को फ़ॉलो करते।
ख़ैर तलवार के इस तरह जगह बनाकर टाँगों के बीच आ जाने से ग़ुस्साए राजा साहब ने तलवार को सज़ा देने की स्टाइल वहीं पटक दिया। अंगरक्षक ने तुरंत लपककर तलवार उठा ली। लेकिन मुकुट का क्या वह तो तिरछा होते ही ज़मीन पर गिर गया था। राजा ने फिर उसे हाथ में ही पकड़ लिया, वैसे ही जैसे आजकल के लड़के हेलमेट पकड़ लेते हैं।
सिंहासन पर बैठ राजा ने सबसे पहले सर पर मुकुट धारा। मुकुट के बिना वह सिंहासन पर न बैठते। जाने कितनी दुरभिसंधियों को रचकर तो यह मुकुट हस्तगत किया गया था। सो उन्हें सिंहासन की क़ीमत पता थी।
बैठते ही आदतानुसार आज्ञा दी-दरबार की कार्यवाही शुरू की जाए। अति गोपनीय बैठक के चलते बैठक में विदेशी मामलों को देख रहे एक बहुत ही विश्वासपात्र मंत्री तथा भावी राजा के रूप में केवल उनका पुत्र उपस्थित था।
पुत्र को इस तरह की मीटिंगों में इसलिए रखा जाता ताकि वह भावी राजकाज के लिए प्रशिक्षण ले सके।
ख़ैर राजा ने बिना भूमिका के ही अपने मंत्री से पूछा कि मंत्री जी क्या अपने पड़ोसी देश से उसके विरोधी देश पर हमला करने को लेकर कुछ बात हुई।
“नहीं राजन पड़ोसी तो इस समय वैसे ही एक अन्य राज्य के साथ युद्ध में उलझा है। और फिर जिस देश पर आप हमला करने की बात कर रहे हैं, उसके साथ अभी मामला इतना नहीं बिगड़ा है कि हमला जैसी स्थिति हो।”
“ओफ़्फ़ो, अरे भाई मामले का क्या है, वह तो अपने हाथ में है। जब चाहे तब बिगाड़ दो,” राजा ने रोशनी दिखाई।
“और फिर बात उसूलों की है। जब उसूलों पर आँच आए तो टकराना ज़रूरी है,” राजा ने अपना काव्यात्मक अभिमत दिया।
फिर बात को गंभीरता का पुट देने की ग़रज़ से सिंहासन पर आगे की ओर खिसकते हुए राजा ने धीरे से कहा, “ऐसा है, तुम पड़ोसी से बात करो। अगर वह न तैयार हो, तो किसी और देश को तैयार करो।”
“राजन आस पास वाले राज्य सैन्य शक्ति में कमज़ोर हैं। वे लड़ने का जोखिम नहीं उठा सकते।”
“तो उन्हें सैन्य सहायता उपलब्ध कराओ, ताकि उनमें आत्मविश्वास जगे और युद्ध की इच्छा जगे। अगर रावण सरेंडर कर जाता, तो राम की रावण पर विजय कैसे होती। और फिर इकट्ठी सैन्य सामग्री की खपत भी तो सुनिश्चित होनी चाहिए। “
“फिर भी राजन . . .”
“फिर भी क्या . . .?”
“ठीक है राजन पर आप ऐसा कर क्यों रहे हैं?”
“सीज़फ़ायर के लिए,” राजा ने अब खुलकर कहा। “शीतयुद्ध में सीज़फ़ायर की स्थिति नहीं आ पाती।”
“जब सीज़फ़ायर ही करना है तो फिर युद्ध करना ही क्यों . . .?” मंत्री जी ने अचकचाते हुए पूछा।
“अरे भाई हम शान्ति प्रेमी हैं यह बतलाने के लिए और उससे भी ज़्यादा यह बतलाने के लिए कि शान्ति के लिए हम युद्ध तक जा सकते हैं।
“अच्छा छोड़िए! आप ऐसे समझिए कि शान्ति तभी आएगी जब अशान्ति होगी और अशान्ति तब होगी जब युद्ध होगा और जब युद्व होगा तभी न सीज़फ़ायर होगा!” राजा ने मौलिक व्याख्या दी।
“सीज़फ़ायर करवाने से हमारी अहमियत भी बढ़ेगी,” राजा ने दूर की बात बताई।
“शीतयुद्ध एक छद्म युद्ध है। इसमें आपस में तनाव बना रहता है और नीरव शान्ति नहीं आ पाती। और वैसे भी हमें छद्म शब्द से चिढ़ है। खुला खेल फर्रुखाबादी होना चाहिए,” राजा ने फ़ुल कॉन्फ़िडेंस से कहा।
“मने नीरव शान्ति स्थापना के क्रमिक चरणों में पहले युद्व, तत्पश्चात् सीज़फ़ायर आना चाहिए,” मंत्री ने अपनी कुल समझ राजा को बताई।
“बिलकुल! और हाँ, सीज़फ़ायर की पवित्र घोषणा भी हमारे ट्वीट के ज़रिए ही की जाएगी। दुनिया हम पर नाज़ करेगी,” राजा ने अपनी स्कीम बताई।
“वाह क्या दृष्टि है राजन!” मंत्री ने लगभग उछलते हुए कहा। उसे उछलना ही था। उछलने की क्रिया किसी अनिष्ट के भय से उसे पूर्णतः निरापद रखती।
“मतलब कि आग बुझाने के लिए पहले आग लगाई जाय,” युवराज ने विमर्श में गंभीर हस्तक्षेप करते हुए कहा।
“वत्स तुम्हारी सीखने की गति तीव्र है, पर शब्द चयन ठीक नहीं,” राजा ने अनमने से कहा।
“पिताजी आप व्यर्थ चिंतित न हों। निजी मंत्रणा में औपचारिक शब्द बाधक बनते हैं,” युवराज ने सफल विमर्श की कुंजी बताई।
“तो तुम इस शान्ति स्थापन प्रक्रिया को बाहर कैसे व्याख्यायित करोगे?”
“पिताजी, ‘शान्ति के लिए युद्ध और शान्ति के लिए ही युद्ध विराम’ हमारा यही घोषित वक्तव्य होगा। यही हमारा राष्ट्रीय नारा होगा। शान्ति ही हमारा केंद्रीय ध्येय।”
राजा की आँखें छलछला उठीं।
मंत्री ने प्रोटोकॉल के चलते टॉवेल राजा की तरफ़ पेश कर दिया।
राजा ने कहा, “मंत्री जी इन आँसुओं को बहने दो, इन्हें रोको मत। ये ख़ुशी के आँसू हैं।
“हमें गर्व है कि हमने देश को एक सुयोग्य युवराज दिया है, जो अब हर तरह से परिपक्व हो चुका है।
“मंत्री राजतिलक की तैयारी करो। राजपंडित से पूछकर मुहूर्त निकलवाया जाय। अब मेरी आयु आराम करने की है। बेटे को राजपाट सौंप दूँ, तो निश्चिंत हो जाऊँ।”
इतना कहकर राजा ने बेटे को गले लगा लिया।
मंत्री दोनों को प्रणाम कर आगे की कार्ययोजना को संपन्न करने हेतु निकल गए।
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