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साहब का फोन और फ़सल

 

अख़बारों और सोशल मीडिया पर ख़बर फैली हुई है, चहुँ ओर उनका ही चर्चा है। एक तो वैसे ही छोटा सा प्रदेश जहाँ कोई साहब छींक दे तो ख़बर फैल जाती है, जहाँ शाम ढले किसी नेता की महफ़िल जमे तो अगली सुबह अख़बार की सुर्खियाँ बन जाती है। ऐसे में ये ख़बर तो नेशनल न्यूज़ होनी थी। पर सौ-दो-सौ सर्कुलेशन वाले अख़बारों ने इसे हेड लाइन बनाकर आठ कॉलम में मुख्य पृष्ठ पर छापा। 

सज्जन जी दफ़्तर में चीफ़ इंजीनियर साहब के कमरे के बाहर स्टूल पर बैठे हैं। आते-जाते चपरासी और सफ़ाई कर्मचारी जैसे लोग व्यंग्य भरी मुस्कुराहट के साथ देखते हुए आ जा रहे हैं। साहब को रत्ती भर भी फ़र्क़ नहीं पड़ रहा है किसी से। उन्हें यक़ीन है ऐसी छोटी-सी घटना से घण्टा किसी को फ़र्क़ नहीं पड़ता प्रशासन में। यहाँ उनकी लॉबी देश भर में नदी, तालाब बेच देती है तो कुछ नहीं होता यहाँ तो थोड़े से पानी की बात है। 

गलियारे से दूसरे विभाग के एक बड़े अधिकारी गुज़रे, उन्होंने देखते ही बुलंद आवाज़ में गुड मॉर्निंग किया और, “बोले अरे यहाँ कहाँ बैठे हो सज्जन जी। आओ हमारे कमरे में, बैठते हैं। साहब आएँगे तो मिल लीजिएगा। वैसे भी साहब का आजकल तय नहीं रहता। गर्मी की फ़सल के लिए पानी की बड़ी मारा-मारी है इसलिए सुबह से दौरे पर निकल जाते हैं।”

उन्होंने चपरासी को समझाया कि बड़े साहब आएँ तो हमें आकर ख़बर करना। 

कमरे में एसी की ठंडक में बैठ उन्होंने पूछा, “बताओ मामला क्या है?” 

सज्जन जी जो एक्सीकेटिव इंजीनियर हैं ने बयान करना शुरू किया, “कुछ नहीं सर! यही फ़सल के लिए पानी का दुरुपयोग न हो इसलिए बड़े साहब ने ड्यूटी लगा रखी है; सभी स्टॉप डैम पर पानी भरपूर रहे। नहर से लीकेज न हो, चोरी नहीं हो पानी की। बस इसी सिलसिले में रात में मुर्रा गाँव में देर हो गयी। सरपंच ने निवेदन किया कि खाना वहीं खा कर जाएँ। उसने बहुत तैयारी कर रखी थी, तो स्टॉप डैम पर महफ़िल जमी। माहौल बना तो थोड़ी ज़्यादा हो गयी। नहर से पानी भरा जा रहा था, हम लेवल देखने के लिए ज़रा क्या झुके, मोबाइल फोन नीचे गिर गया।”

“तो फिर आपने क्या किया?” 

“सर! रात हो गई थी ज़्यादा लाइट भी नहीं थी तो कुछ नहीं कर पाए। वापस आ गए। सुबह फिर पौ फटने के पहले वापस पहुँच गए। सरपंच ने दो=तीन लोगों को पानी में उतारा, मगर कुछ हासिल न हुआ। फिर बड़े साहब से बात की फोन पर। उन्हें मामला बताया तो वो बोलने लगे कि एक फोन ही तो है, छोड़ो! नया ले लेना। इस सीज़न में इतना तो कमा ही लोगे।

“पर क्या है न सर, आई फोन का एकदम लेटेस्ट मॉडल था, डेढ़ लाख का था, ऐसे कैसे छोड़ देते। तो हमने साहब से निवेदन किया कि थोड़ा पानी डैम से निकाल कर देख लें। पानी कम होगा तो गोताख़ोर नीचे तक जा पाएँगे। साहब को शायद लगा कि वैसे भी पानी छोड़ ही रहे हैं नहरों में तो प्रयास किया जा सकता है, उन्होंने ‘ कहा देख लो। किसी प्रकार की परेशानी मत खड़ी हो इतना ध्यान रखना।’

“बस उनकी मंज़ूरी मिल गयी तो सरपंच ने एक डीज़ल पम्प लगा दिया। सोचे थे एक दिन में काम हो जाएगा। पर तीन दिन हो गए लगातार पानी निकालते, कुछ हासिल नहीं हुआ। कल कोई रिपोर्टर उधर से गुज़रा तो उसने वीडियो बनाकर सोशल मीडिया में वायरल कर दिया। तब से बवाल मचा हुआ है।”

सज्जन जी आक्रोशित हो बोल रहे थे, “सर! साल भर बिना टाइम टेबल देखे काम करते हैं, किसानों के खेत में पानी कैसे पहुँचाएँ इस के लिए कितनी योजनाएँ बनाते हैं, नहर खुदवाते हैं, स्टॉप डैम बनाते हैं। क्या एक फोन के लिए थोड़ा सा पानी फेंक नहीं सकते हम?” 

“क्यों नहीं सज्जन जी, क्यों नहीं! ज़रूर फेंक सकते हैं। आख़िर नहरों में बहते पानी और स्टॉप डैम से रिसती बूँदों से ही तो ऐसी महँगी चीज़ें ख़रीद पाते हैं हम और आप। ऐसे कैसे खो जाने दें? कोई बड़ा जुर्म तो नहीं किया आपने। देखना साहब भी कोई कड़ी कार्यवाही नहीं करेंगे आप पर।”

चपरासी ने आकर बताया कि बड़े साहब सज्जन जी को याद कर रहे हैं। 

दूसरे दिन अख़बारों में विभाग के हवाले से ख़बर छपी थी कि मोबाइल फोन में विभाग की और किसानों के खेतों में पानी वितरण की महत्त्वपूर्ण योजना से जुड़ी जानकारियाँ थीं इसलिए उसे वापस पाना ज़रूरी था, इसलिए सज्जन जी ने ऐसा किया। 

फोन तो अन्ततः मिल गया था लेकिन कई दिन डूबे रहने के कारण चालू नहीं हो रहा था। सज्जन जी को डेढ़ लाख रुपए का घाटा कैसे पाटा जाए ये चिंता थी। और आसपास के किसानों को इस बात की चिंता, कि फ़सल में जब ज़्यादा पानी की ज़रूरत होती है, डैम ख़ाली पड़ा है, फ़सल का क्या होगा? 

विभाग में ज़रूरी लिखा-पढ़ी हो चुकी है। सज्जन जी का क्षेत्र बदल दिया गया है। वो अब नए गाँव नए सरपंचों से हेल-मेल बिठाने में लग गए हैं। 

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