गोल रोटियाँ
कथा साहित्य | लघुकथा संजय मृदुल1 Jan 2023 (अंक: 220, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
महीना भर हो चुका था क्षिप्रा की शादी को। हनीमून, मायके जाना सब निपट चुका था। अब एक महीने ससुराल में रहना था। उसके बाद वापस मुम्बई जाकर नौकरी जॉइन करनी थी, पवन कल ही जा चुके थे उनकी छुट्टियाँ नहीं थी ज़्यादा।
आज किचन में पहला दिन था क्षिप्रा का, सुबह सबके लिए चाय बनाई। किसी ने कुछ कहा नहीं पर लगा कि सबको पसन्द आई है।
फिर बारी आई नाश्ते की तो मम्मी जी ने कहा, “आज अपनी पसन्द का बनाओ सब कुछ। आज नाश्ता लन्च सब तुम्हारी पसन्द का खाएँगे। मैं मदद करूँगी तुम्हारी बनाने में।”
क्षिप्रा थोड़ी परेशान थी, इस तरह कभी सब के लिए खाना नहीं बनाया था। मायके में कभी मम्मी ने ज़रूरी नहीं समझा कि सब सिखाये। न ही उसे लगा कि इस काम को इतना महत्त्व देकर सीखना चाहिए। बस काम चलाऊ बनाना आता है।
ब्रेड पकौड़े बनाने आते थे तो सुबह के नाश्ते में बना दिये। साथ में कैचप और दही रख दिया। नाश्ता हुआ तो चैन की साँस ली उसने। लगा आधी जंग जीत ली। मगर अभी तो दोपहर की तैयारी करनी थी, ‘हे प्रभु हिम्मत देना पहले ही दिन ऐसा न सुनना पड़े की क्या सिखाया है तुम्हारी मम्मी ने’।
ससुरजी ने टीवी देखते हुए सब्ज़ियाँ काट दीं, आज रविवार है तो सब फ़ुर्सत में हैं। ससुरजी बहुत सुलझे हुए हैं, हमेशा संयत, गम्भीर, कम बोलते। मगर सब का ध्यान रखते। घर में बाहर के काम भी ऑफ़िस से आते हुए कर लेते। क्षिप्रा के सर पर प्यार से हाथ फेरते तो लगता पापाजी पास हैं।
आज के समय में अरेंज मैरिज, सोच कर अजीब लगता है न। मगर ये परिवार के संस्कार थे कि क्षिप्रा का ध्यान पढ़ाई और फिर काम के अलावा कहीं नहीं भटका।
सब ने मिलकर पवन को पसन्द किया तो क्षिप्रा ने भी हाँ कर दी। जैसे होती हैं अंततः शादी भी हो गयी।
मम्मी जी ने देखा कि उसके हाथ में मायके की मेंहंदी के रंग उतरे नहीं है तो रोटी के लिए आटा लगा दिया था।
सब खाने बैठे तो मम्मी जी के साथ रोटी बनाने की बारी आई। उन्होंने बोला, “तुम बेलों मैं सेकती हूँ।”
क्षिप्रा सकते में। कभी रोटी बनाई नहीं थी उसने। देखा था बस मम्मी को बनाते। सेकते तो चलो फिर भी बन जाता जैसे तैसे। मगर बेलना? उफ्फ्फ्फ।
बड़ी हिम्मत कर के एक रोटी बेली, पता नहीं किस देश का नक़्शा बना। मगर बना। तभी पापाजी का अचानक किचन में पदार्पण हुआ।
“अरे बहू ये क्या है, अमीबा जैसा दिखाई दे रहा है ये तो। सुनो एक काम करो रोटी का डिब्बा उल्टा रखकर काट दो इसे। रोटी गोल बन जाएगी,” उन्होंने सलाह दी।
“क्यों जी, क्या कुछ दिन गोल रोटी नहीं खाओगे तो भूख नहीं मिटेगी? तोड़ तोड़ कर क्यों खाते हो गोल रोटी। पूरी खाया करो न,” मम्मी जी ने नज़र तरेर कर कहा, “ये जैसी रोटी बनाएगी वैसे ही खाएँगे। गोल रोटी और अच्छी गृहस्थी बनाने में बहुत समय और धीरज लगता है। सीखना भी पड़ता है मन लगाकर। क्षिप्रा भी जल्द सीख जाएगी। तब तक इसका हौसला बढ़ाओ, समझे!”
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