प्रेम पत्र
कथा साहित्य | लघुकथा संजय मृदुल1 Feb 2025 (अंक: 270, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
“ये क्या है?”
“चिट्ठी है।”
प्रश्नवाचक चिह्न बना उसके चेहरे पर। “क्यों? इसकी क्या ज़रूरत है?”
“बस यूँ ही, मन किया तो लिख ली।”
“रोज़ ही तो मिलते हैं। फिर और क्या रह गया कहने को?”
“पता नहीं। शायद वही सब लिखा हो, जो रोज़ कहता हूँ। पर लिखा है ये सोचकर कि ये मिटेगा नहीं, भूलेगा नहीं।”
“तुम जो कहते हो तो वैसे भी अमिट है, लिखने की ज़रूरत नहीं।”
“रात तुम्हारी बहुत याद आई। कुछ न सूझा तो यह कर डाला।”
“ओहो! सच्चे आशिक़ हो यार तुम तो!”
“पता नहीं, सच्चा हूँ या झूठा। पर आशिक़ तो हूँ तुम्हारा।”
“कोशिश करूँगी सम्हाल कर रखूँ जीवन भर इसे।”
लड़के के चेहरे पर भीगी सी मुस्कान आई।
“जीवन की साँझ में किसी किताब के पन्ने में ये पीला पड़ा हुआ काग़ज़ मेरी याद दिलाएगा। जब साथ न होंगे हम।”
लड़की ने पर्स में रखते हुए तीखी निगाह से लड़के की ओर देखते हुए कहा—तुमसे ही पढ़वाऊँगी इसे उस साँझ में, समझे!
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