साथ चलो ना
कथा साहित्य | लघुकथा संजय मृदुल1 Oct 2025 (अंक: 285, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
उदास-सी शाम, टिप–टिप करती बूँदों की आवाज़, अजीब सी ख़ामोशी, पत्थर की बेंच पर बैठी हुई अनिका ने पैर के अँगूठे से ज़मीन को कुरेदते हुए अबीर की ओर देखा। अबीर टक लगाए डूबते हुए सूरज को निहार रहा था मानो उस सूरज के साथ वो भी डूब जाना चाहता हो। अनिका निर्लिप्त है अबीर की भावनाओं से। अबीर के भीतर पसरता हुआ अंधकार उसे नज़र नहीं आ रहा है। अनिका को चाहिए एक सुरक्षित भविष्य, जो कि उसे अबीर के साथ दिखाई दिया था। अबीर को जीवन साथी के साथ एक प्रेमिका भी चाहिए थी, उसे लगा कुछ समय में वो प्रेम करने लगेगी अबीर को। अभी तो शादी में कई महीने हैं। एक दूसरे को समझने, जानने के लिए पर्याप्त वक़्त है अभी।
ये छोटी-छोटी मुलाक़ातें एक दूसरे को क़रीब ला रही हैं। और आपस में सामंजस्य बिठाने में मदद भी कर रही हैं। लेकिन अबीर को लग रहा है जैसी जीवन साथी वो चाह रहा है वैसे नहीं है अनिका। पंसद नापसंद पर बात होती है दोनों में। भविष्य की प्लानिंग पर चर्चा करते हैं दोनों। परिवार के बीच सामंजस्य कैसे बनाएँगे, नौकरी और घर कैसे सम्हालेंगे एक साथ, सब बातों पर खुल कर बात करती है अनिका। लेकिन जैसे ही थोड़ा रोमांटिक होता है अबीर, वो असहज हो जाती है। ना कोई जवाब देती है ना किसी तरह की प्रतिक्रिया।
अबीर ने हिम्मत कर के पूछा ये सोचते हुए कि आज आर या पार।
“तुम हमारे भविष्य को लेकर बहुत आशान्वित हो, लेकिन ये बताओ की क्या जीवन में बस ज़िम्मेदारियाँ, एक दूसरे के प्रति दायित्व निभाना और साथ रहना ही शादी है? प्यार, रोमांस के लिए कोई जगह नहीं है तुम्हारे भीतर।”
अनिका को एक अनजाना-सा डर सताने लगा। जिस सवाल से वो भागती रही है हमेशा वही सामने खड़ा है आज।
“नहीं ऐसा नहीं है। शायद मैं तुमसे खुलकर बात कर सकती हूँ। मैंने अपने घर में मम्मी पापा को ऐसे ही देखा है हमेशा, बस सारी ज़िम्मेदारियाँ का निर्वाह करते, मशीन की तरह सारा जीवन चलाते हुए। उनके बीच प्यार जैसी कोई चीज़ है या नहीं मुझे आज तक समझ नहीं आया। विवाह के बाद ऐसे ही जिया जाता होगा मुझे लगता था। शायद इसीलिए मैं ऐसी हूँ।”
“हाँ! उस समय में बिना सहमति के विवाह हुआ करते थे। ना परिचय, ना बातचीत, बस परिवार ने रिश्ता तय किया और बँध गए बंधन में। किसी के बीच प्यार पनप गया तो कोई सारा जीवन यूँ ही कोल्हू के बैल की तरह साथ घूमते रहे बिना कुछ सोचे। लेकिन आज तो ऐसा नहीं है ना! हम इतने बार मिल चुके हैं, अगर तुम्हें लगता है की हमारा भविष्य भी तुम्हारे माता पिता जैसा होगा तो हमें आज ही यहीं रुक जाना चाहिए।” अबीर ने मन कड़ा कर के कहा।
भय की एक छाया अनिका के चेहरे से होकर गुज़र गई। ढलती हुई साँझ अपने साथ अँधेरा लेकर आ रही थी, उसे लगा उसका निर्णय उसके जीवन को या तो इस अंधकार में मिला देगा या फिर कल सुबह के उगते हुए सूरज के साथ रौशन करेगा।
“मैं कोशिश करूँगी की उस अवसाद से बाहर आ सकूँ अगर तुम मेरा साथ दोगे तो। इतने सालों जो देखा-सुना और सीखा है उससे अलग तभी कुछ कर पाऊँगी अगर तुम हाथ थाम कर चलाओगे मुझे,” अनिका का स्वर भीगा हुआ था। बेमेल शादी की कड़वाहट के दंश को अपने जीवन में नहीं उतरने देना चाहती वो।
बादलों से भरे हुए आसमान में पल भर के लिए चाँद निकला और आसपास रौशनी बिखर गई। अबीर ने धीरे से अनिका का हाथ अपने हाथ में ले लिया। अनिका ने भविष्य के लिए निश्चिंत होकर अबीर के हाथ को कस कर थाम लिया।
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