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मास्क वाले चेहरे

 

यूँ तो चेहरा छुपाने की प्रथा बहुत पुरानी है। आदरणीय देवकी नन्दन खत्री की किताब चंद्रकांता सन्तति में काले कपड़े से मुँह बाँधना हो या जादुई पिटारे की मदद से रूप बदलने से लेकर हिंदी फ़िल्मों के जासूस और पोलिस वालों को और डाकुओं को काले कपड़े से मास्क बनाते सबने देखा होगा। 

फिर हिज़ाब का अपना ही रुतबा है। कितने गाने भी बने हैं इनपर जैसे “रुख से ज़रा नक़ाब हटा दो मेरे हुज़ूर” या “फिर ये जो चिलमन है दुश्मन है हमारी।” 

अब चूँकि अंग्रेज़ी का बोलबाला है तो इनका नाम मास्क प्रचिलित हो गया। अंग्रेज़ी में भी कुछ फ़िल्में बनी हैं मास्क शब्द से जैसे ‘मास्क ऑफ़ द ज़ोरो’, और एक एनिमेशन फ़िल्म भी ‘द मास्क’, ‘सन्‌ ऑफ़ मास्क’। 

मास्क बनाने का मटेरियल भले ही अलग-अलग हो कपड़ा, प्लास्टिक, चमड़ा या और कुछ, उद्देश्य तो बस मुँह छिपाना ही रहा है। अब चाहे वह हीरो हो खलनायक या सुंदर हीरोइन। 

ये उस वक़्त की बात है जब धरती पर प्रदूषण नामक खलनायक की आमद नहीं हुई थी। ये प्रदूषण खर-दूषण नामक दैत्य का दूर का भाई है। फिर इंसान लालच में आता गया धुँए, धूल और गन्दी हवाओं से धरती का रूप बदलने लगा तब, मोटी चमड़ी वाले पुरुषों को तो फ़र्क़ नहीं पड़ा मगर कोमलांगी महिलाओं ने चेहरे की लुनाई बचाने के लिए चेहरे पर कपड़ा बाँधना शुरू कर दिया। 

ये मैं अपने देश की बात कर रहा हूँ। जितनी सलवार सूट, जीन्स टॉप और दूसरे कपड़ों की बिक्री होती थी, उतनी ही मैचिंग दुपट्टे या स्कार्फ़ की होने लगी। 

एक समय तो हालात ऐसे हो गए कि पिता के सामने से बेटी या भाई के सामने से बहन निकल जाए तो पहचान नहीं पाते थे, क्योंकि चेहरा पूरी तरह ढँका हुआ होता। फिर इसका विरोध भी होने लगा। पक्ष विपक्ष में तर्क दिए जाने लगे। अख़बारों न्यूज़ चैनलों में बहस होने लगी। स्कूल कॉलेज में नोटिस निकलने लगे। सार्वजनिक स्थानों पर पोस्टर चिपकने लगे कि स्कार्फ़ लगाना ग़ैर क़ानूनी है। बैंकों के एटीएम में भी ये सूचना लगाई जाने लगी। 

अति तो ऐसे भी होने लगी कि कोई लड़का किसी अनजान लड़की पर फ़िदा होकर उसकी गाड़ी के पीछे-पीछे मीलों तक सफ़र कर आने के बाद उसकी सूरत देख कर हताश निराश होकर अपनी क़िस्मत को कोसता वापस आ जाता। 

अपने देश में साँवला रँग क़ुदरती है, फ़िल्मी हीरोइनों से प्रेरित होकर अनायास ही फ़ेयरनेस क्रीम वाली कम्पनियों की निकल पड़ी। रंग-रंग के विज्ञापन आने लगे। नए-नए उत्पादों की बाढ़ आ गयी फिर भी मास्क या स्कार्फ़ पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा। दिन हो या रात लड़कियाँ इसे धारण किये रहतीं। 

फिर अचानक एक दिन आया कोरोना नामक विषाणु। एक दिन में जैसे दुनिया ही बदल गई। जो मास्क के विरोधी थे वो मास्क लगाए घूमने लगे। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने घोषणा की कि सारी दुनिया में मास्क लगाना अनिवार्य है। 

अब क्या था मास्क बनाने वाली कम्पनियाँ खुल गयीं। एक लेयर, तीन लेयर, सात लेयर वाले मास्क आने लगे। एक मास्क ‘एन 95’ नामक मास्क तो विश्व में सबसे विश्वनीय मास्क बन गया। लोग जैसे खिड़की का एक पल्ला बन्द किया जाता है अपना मुँह आधा ढँके दिखाई देने लगे। 
दुनिया का तो पता नहीं, अपने देश में आपदा में अवसर ढूँढ़ लेने वालों की कमी नहीं है। कलात्मक जुगाड़ू और चंट लोगों ने मास्क की तरह-तरह की वेराइटी निकाल कर बाज़ार में फैला दी। और तो और शादियों के लिए लड़के वालों के अलग और लड़की वालों के लिए अलग मास्क डिज़ाइन कर दिए। 

दूल्हे के लिए शेरवानी से मैचिंग और दुलहन के लिए मोती जड़े मास्क भी मिलने लगे। मास्क अनिवार्य वस्तु से लग्ज़री बन गयी। फिर बड़ी-बड़ी कम्पनियों ने तो बाक़ायदा शो रूम खोल दिये मास्क के। 

फिर अचानक एक दिन घोषणा हुई कि ‘एन 95’ मास्क कोरोना में पूरी तरह कारगर नहीं है। आप चाहें तो रुमाल या कॉटन के कपड़े से मुँह बाँध सकते हैं। 

अचानक ही कितने लोगों का दिल तोड़ दिया सरकार ने। मास्क बिकने कम हो गए लोग पुराने गमछे, रुमाल निकालने लगे सन्दूकों से। 

कानों को इससे थोड़ी राहत मिली। इलास्टिक के खिंचाव से इनका डिज़ाइन बदलने लगा था। और नाक भी थोड़ी चपटी लगने लगी थी, महीनों तक मास्क लगा लगा कर। 

समाजसेवियों ने कपड़े के मास्क बना बना बाँटे देश भर में। 

दो साल लगातार मास्क लगाया सब ने। बिना मास्क का चेहरा ऐसा लगता जैसे नई बहू ने घूँघट नहीं लिया हो। रात में सोते हुए अचानक ही लगता कि चेहरे पर से कुछ ग़ायब हो गया और नींद खुल जाती। 

उन दो सालों में यही लगता था कि यही हाल रहा तो आगे शादी में ली गयी फेमिली फोटो में नीचे सबके नाम लिखे होंगे। नीचे बाएँ से खड़े हुए श्री..., बीच वाली लाइन में बैठे हुए बाएँ से श्री...। 

लड़का लड़की देखने जाएगा तो प्रश्न करेगा तुम कितनी देर मास्क उतारकर रह लेती हो? स्कूल में बच्चों के मास्क में उनके नाम और रोल नम्बर लिखे जाएँगे। सोशल मीडिया में बिना मास्क फोटो डालना प्रतिबंधित होगा। बिना मास्क गाड़ी चलाने पर जेल हो जाएगी। और कोई भी खेल बिना मास्क के खेलना मना होगा। सबसे ख़राब तो ये कि कोई भी फ़िल्म या सीरियल में बिना मास्क कलाकारों को दिखाना सेंसर से मंज़ूर नहीं होगा। 

ईश्वर की कृपा रही कि सब कुछ समय के साथ सामान्य हो गया। लोग भूल गए कोरोना भी आया था, वैसे भी ईश्वर ने भूलने की ग़ज़ब शक्ति दी है इंसानों को। सोचिए क्या नज़ारा होता अगर कोरोना रह जाता? आधार कार्ड को मास्क से लिंक किया जाता। सभी जगह आपके मास्क को स्कैन कर आपकी पहचान पुख़्ता की जाती। मास्क केवल मास्क नहीं रह जाता बल्कि अस्तित्व का एक अभिन्न अंग बन जाता। 
आज जब सब पहले जैसा हो गया है कुछ विद्वान हैं जो मास्क लगाकर घूमते हैं। कोई कहता है आदत हो गयी है तो कोई कहता है वायरस तो 

अब भी है नाम बदल कर आ ही रहा है। इसलिये मास्क लागना सुरक्षित है। इस मास्क ने कितने चेहरों के पीछे छिपे चेहरों को उजागर किया कोरोना काल में, है ना। 

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