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शबरी के राम

 

जंगल में रहने वाली शबरी को किसी लकड़हारे ने बताया कि राम जी वापस आ गए हैं। तो वो ख़ुशी से फूली नहीं समाई। 

राम जी लंका जाते समय उसकी झोपड़ी में रुककर उसे कृतार्थ कर गए थे। उसके झूठे बेर खाने वाली बात जाने किसने जनता में फैलाई थी, जिसके कारण शबरी काफ़ी मशहूर हो गई थी। उसकी झोपड़ी ऐसी नदी के किनारे ऐसी जगह पर थी जहाँ ज़्यादा लोग आते-जाते नहीं थे। न तब अख़बार थे न टीवी ना इंटरनेट। 

फ़ेमस होने के कुछ दिन बाद राज्य में शबरी की काफ़ी चर्चा रही। उसे मुखिया ने बुलाकर ग्राम सभा में सम्मानित भी किया। धीरे-धीरे सब सामान्य होने लगा लोग उस बात को भूलने लगे। 

जब शबरी ने सुना राम वापस आ गए हैं अयोध्या उसका मन प्रफुल्लित हो उठा। उसने लकड़हारे से पूछा कब, कैसे, किस रास्ते से आए राम? साथ कौन आया, लक्ष्मण, सीता भी हैं क्या? वापस जाते समय कौन से रास्ते से गए राम? 

लकड़हारे को इतिहास का पता नहीं था। उसने बस इतना बताया कि एक महापुरुष हैं भारत देश में, जिनका राज है अब। देश विदेश में उनका डंका बजता है। 

शबरी ने पूछा, “चक्रवर्ती सम्राट हैं? क्या नाम है?” 

लकड़हारे ने दुखी होकर बताया कि उसे ज़्यादा कुछ मालूम नहीं है। उसके गाँव में न अख़बार आता है ना बिजली है जिसके कारण इंटरनेट नहीं चलता। उसने रेडियो पर सुनी है ये ख़बर। 

तीन युगों से राम की वापसी की राह तकती शबरी आज भी अपनी झोपड़ी से ज़्यादा दूर नहीं जाती कि जाने राम कब वापस आ जाएँ। उसे इस बात का अंदाज़ा नहीं कि दुनिया इन तीन युगों में कहाँ से कहाँ पहुँच गई है। कितना विकास हो गया है। न उसने अपना आधार कार्ड बनवाया, ना राशन कार्ड। न कोई उस तक पहुँचा न वो विकास तक। जंगल में जहाँ वो रहती है वो आज भी वैसा ही है। 

लकड़हारे से ये जानकर उसे बड़ी ख़ुशी हुई की राम आ गए हैं। उसने अपनी गठरी बाँधी और निकल पड़ी अपने राम लक्ष्मण से मिलने। 

जंगल की अपनी झोपड़ी से निकल जब शबरी गाँव को पार कर शहर पहुँची तो उसने देखा दुनिया कितनी बदल गई है। मल्टीस्टोरी बिल्डिंगें, एक्सप्रेस हाइवे, पटरी पर दौड़ती ट्रेन, सड़कों पर गाड़ियों की क़तारें। 

हक्का-बक्का हुई शबरी को यह समझ नहीं आ रहा था की इतनी सारी सुविधा के रहते भगवान जंगल के रास्ते पैदल माता सीता को तलाशने क्यों निकल पड़े थे। 

शबरी के लिए न साल बदले थे न युग। वो आज भी वहीं उसी उम्र में रुकी हुई है। राम के स्नेह, आशीष ने उसे वहीं थाम दिया था। 

लोगों से पूछते पूछते, वो अयोध्या की ओर चल पड़ी। सड़कों पर धक्के खाते, पैरों में छाले हो गए उसके। जैसे-तैसे महीनों की यात्रा कर जब वो अयोध्या पहुँची तो उसे लगा उसके राम का घर आ गया। सारे रास्ते उसने बिजली के खंभों में राम जी की धनुष उठाए फोटो देखी थी, राम के बराबर ही एक और फोटो लगी देखकर उसने मान लिया की यही वो सम्राट है जो राम को लंका से लेकर आए हैं। 

अयोध्या में पहुँचते ही उसे अनुभव हुआ कि दुनिया भर की भीड़ वहाँ इकट्ठी हो गई है राम-सीता-लक्ष्मण के दर्शन के लिए। भीड़ में पिसती, धक्के खाते, पूछते हुए वो चलती रही। वो राम जी के महल का पता पूछती तो लोग मंदिर का रास्ता बताते। उसे लगा उसके राम महल में क्यों नहीं रहते जहाँ उनका परिवार रहता है। ये मंदिर क्या बला है? ऐसे सैकड़ों प्रश्न उसके मन में उमड़ रहे थे। 

मंदिर के निकट पहुँच कर उसे लगा इस जन्म में फिर उसे उसके राम से वो न मिल पाएगी। किसी ने उसे पकड़कर क़तार में खड़ा कर दिया, हज़ारों की लाइन में दबती-पिसती शबरी अपनी पोटली में बँधे सूखे बेर को सहेज सीने से लगाए उत्सुक थी की राम उसे पहचानेंगे या नहीं। उसके मीठे बेर का स्वाद राम को याद है या नहीं। 

सुबह की क़तार में लगी शबरी जब मंदिर के गर्भ गृह के निकट पहुँची तो उत्कंठा से उसका गला सूख गया। प्रेम से उसकी आँखें डबडबा उठी, बदन में सिहरन सी दौड़ने लगी। लगा राम उसे देखते ही अपने सिंहासन से उठ आयेंगे। 

तभी उसकी नज़र पड़ी गर्भ में खड़ी बाल रूप में एक मूर्ति पर। सभी उसे प्रणाम कर रहे थे। उसने पास खड़े पुजारी से पूछा, “महाराज! मेरे राम कहाँ हैं? क्या सीता और लक्ष्मण भी साथ आए हैं? उनसे बस इतना बताओ कि शबरी आई है।”

पंडित जी के माथे पर शिकन के त्रिपुंड बने, आँखें तरेरकर उन्होंने शबरी को देखा और कहा, “माई वो सामने जो मूर्ति है वो राम लला की है। अगर दर्शन कर लिए हों तो आगे बढ़ो, पीछे बहुत भीड़ है।”

शबरी कुछ कह पाती उसके पहले ही पीछे से धक्का लगा और वो भीड़ के साथ आगे बढ़ आई। न वो राम की मूर्ति निहार पाई मन भर कर। न उसने वहाँ सीता और लखन को देखा। 

कुछ देर में ही वो बाहर थी, धक्के में उसकी बेर की पोटली जाने कहाँ गिर गई थी। वो सोच रही थी की राम का महल अधूरा क्यों है? उनका परिवार कहाँ है? वो सबसे पूछने लगी कि जो राम को लाएँ हैं कोई उनसे शबरी को मिला दे तो वो पूछे कि बाक़ी सब कहाँ है? अयोध्या में जहाँ राम जन्मे, जहाँ वो बड़े हुए, अपनी तीन माताओं का जहाँ उन्हें प्रेम मिला, सीता के साथ जहाँ रहे वो महल, वो अयोध्या कहाँ है? 

बौराई हुई शबरी सब से ऐसे प्रश्न पूछती कई दिन तक घूमती रही। लोग उसे देखते, उसकी बातें सुनते और हँस देते। 

शबरी को अपने राम तो न मिले, वो उनसे मिलना चाहती है जो राम को लाए हैं। वो बताना चाहती है कि ये वो राम नहीं है जो शबरी से मिले थे। शबरी के आँखों में आज भी उन राम लक्ष्मण की तस्वीर बसी हुई है। 

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टिप्पणियाँ

सरोजिनी पाण्डेय 2024/02/05 05:53 PM

बेचारी शबरी ,रही बस बुद्धि से कोरी समय की गति जानती नहीं, तथ्य यह पहचान नहीं, भक्त के वश में हैं भगवान, जाकी रही भावना जैसी, हरि मूरत देखी तिन तैसी!!

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