चाँद का जादू
काव्य साहित्य | कविता रामदयाल रोहज1 Jul 2019
आकाश का विशाल दंगल
अनगिनत तारों के दर्शक करते
बेसब्री से प्रतिक्षा
उस जग जादूगर की
बच्चे प्रफुल्लित
उल्काओं से दौड़ते
खेल रहे है इधर उधर
तभी सिर पर
श्यामस्वर्ण रूमाल बाँधे
उस महाजादूगर का
दंगल में प्रवेश
तालियों से ज़ोरदार स्वागत
डमरु की डम डम से
ध्वनिमय हो उठा
समूचा चराचर संसार
शुरू हुआ जादू का खेल
अपनी संगीनी
रजनी की काली साड़ी को
पलक झपकते ही बना दिया
दुग्ध धवल अतिसुन्दर
मात्र एक मुस्कान से
कुमुदनियों पर डाला जादू
जैसे श्रीकृष्ण ने गोपियों पर
बूढ़े समुद्र में भी
उत्पन्न कर दिया ज्वार
जो रोमांचित होकर निहार रहा है
आदिमित्र चकोर अचंभित सा
देख रहा है अपलक
अचानक किसी ने कहा
ओह ! जादूगर की
देह हो रही है छोटी
धीरे धीरे वह सींकिया
शरीर का हो गया
फिर बिल्कुल ग़ायब
तो खुले गगन के
नीचे सोने वाला
बालक बोला घबराया सा
ओ! जादूगर लौट आओ
मेरा मन फिर से बहलाओ।
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