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हमने गीता का उदय देखा है

कब दुख को हमने खोजा है
कब सुख को हमने पकड़ा है,
हम वीतराग से चलते हैं
श्रीकृष्ण कन्हैया से मिलते हैं।


हमने महाभारत नहीं देखा है
न युद्धभूमि में वैराग्य ढूँढ़ा है,
पर एक चीत्कार सुनते आये हैं
युग को कलियुग कहते आये हैं।


बहुत ऊँचे शिखरों तक हम हैं
कुछ कह आये, कुछ कहने को हैं,
समय चलता है तो चलता जाय
हमने कब उसको रोका है।


हमने लँगड़़ाने का नहीं सोचा है
पर ध्वजा हमारी भी टूटी है,
हमने कृष्ण पक्ष भी देखा है
शुक्ल पक्ष कब किसने रोका है!


वनवास हमारे ग्रंथों में है
अज्ञातवास भी मिल जाता है,
समय के पंखों पर उड़ते-उड़ते
हमने गीता का उदय देखा है।


हमने कब श्री राम से प्रश्न किया है
कब श्रीकृष्ण से कुछ पूछा है,
जब-जब कथा उनकी आयी है
सब निर्विकार हो जाता है।

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