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ठंडी सड़क (नैनीताल)-08

 

बूढ़े ने मेरा हाथ पकड़ा और उसकी लाइनों को देखने लगा। और बोला, “बचपन में तुम गाँव में रहते थे। तीन साधु तुम्हारे घर आये थे। तुमने उनसे बहुत तर्क किये थे। उसमें से एक साधु ने कहा था तुम विदेश जाओगे। तुम्हें विश्वास नहीं हुआ था। लेकिन पच्चीस साल बाद तुम अमेरिका चले गये।” 

मैंने उन्हें रोका और कहा, “मैं आपको एक बात बताता हूँ जो मेरे दिमाग़ में घूमने लगी है, आपकी बातों के बीच प्रवाह बना रही है। अपने डाक्टर-मित्र के बारे में। 

“फ़ेसबुक पर मुझे एक ‘मित्र अनुरोध’ मिला, अटलांटा, संयुक्त राज्य अमेरिका से। नाम है, सोरेल। मैंने अनुरोध स्वीकार करने का मन बनाया। इससे पहले मैं सरला देवी जी (गाँधी जी द्वारा रखा नाम) जो ब्रिटिश महिला थी, उनसे १९८० में मिल चुका था। उनको मैंने पोस्ट कार्ड लिखा था, मिलने से पहले। और एक दिन उनकी कुटिया में रहा था, धर्मघर में जो बागेश्वर से आगे है। सामने हिमालय का सौन्दर्य था और हम नरम-नरम धूप सेक रहे थे। उन्होंने पहाड़ों में बकरियों की बलि प्रथा पर दुख व्यक्त किया था। आजकल कुछ मंदिरों में बकरी के स्थान पर नारियल तोड़ा जाता है, जो एक सकारात्मक क़दम है। प्रथा बन जाय तो अच्छा है। किसी प्राणी के प्राण लेकर हम अपनी मनोकामना पूरी करने की, कैसे सोच सकते हैं? वह शाम को सिलबट्टे में कुछ पीस रही थीं। मैंने पूछा, ‘मैं पीस दूँ।’ और पीसने का काम पूरा कर दिया। उन्होंने वनों के संरक्षण पर भी एक किताब लिखी है। 

“रात को रजाई, गद्दे की आवश्यकता पड़ी थी। अच्छी ख़ासी ठंड थी। उन दिनों पहाड़ चढ़ने की भूख थी। समीप में एक हिरन अभयारण्य भी था जिसे देखने गया था। वैसा ही भाव मन में आया और मैंने मित्र अनुरोध स्वीकार करने से पहले थोड़ा सोचा, फिर स्वीकारा। 

“सोरेल ने लिखा मित्र अनुरोध स्वीकार करने के लिए धन्यवाद।” 

“आपसे मिलना अच्छा लगा। अगला प्रश्न था, ‘आप कहाँ से हो?’ 

“मेरा उत्तर था, भारत (इंडिया)।” 

“ओह, इंडिया सुन्दर देश होगा?” 

“हाँ। आप यूएसए से हैं? मैं 1999 में डलास, टेक्सास गया था।”

“ओह, सच्ची! आप कितना समय रहे यूएस में?” 

“28 दिन।”

“ओह, सच्ची! मेरी आशा है आपने यूएस यात्रा का आनन्द लिया होगा?” 

“हाँ, सभी प्रबंध एक बहुत बड़ी प्रयोगशाला, यूएसए ने किये थे। और पास के स्थानों में भी घूमा। चीन और मलेशिया से आये लोगों से भी बोलचाल हुई।”

“ओह, यह इतना दिलचस्प है।” 

“मैं भी इंडिया की यात्रा करना चाहती हूँ।” 

“मैं सोचता हूँ यह अच्छा विचार है।”

“क्या आप मुझे अपने बारे में, देश, वैवाहिक स्थिति, काम, रुचियाँ और जो बातें अच्छी लगती हों, इनके बारे में थोड़ा अधिक बता सकते हैं?” 

“मैं हिन्दी में लिखता हूँ। उम्र 67। मेरे देश में विशाल हिमालय (ग्रेट हिमालयाज़), पवित्र गंगा हैं और देश को बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर से घिरा पाओगे। यह आदि सभ्यता और संस्कृति का देश है। यहाँ अनेक त्योहार हैं। पवित्र स्थानों की बहुतायत है। आप इसकी विविधता और प्रकृति पर आश्चर्य कर सकते हो। ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ इसका आदर्श रहा है। अमेरिकी लेखक मार्क ट्वेन दो माह बनारस में रहे थे। फोटो में तुम एक शालीन लड़की लग रही हो।”

“यह मेरी ख़ुशी है जो मैंने तुमसे सुना। आशा है। आप ठीक होंगे। मुझे प्रसन्नता है कि आपने मेरा मित्र अनुरोध स्वीकार किया जो भविष्य में फलीभूत होगा। आजकल मैं यमन में हूँ। यूएस सेना में डॉक्टर हूँ। शान्ति सेना के साथ, एक सिपाही (सोलजर)। मेरी आयु 32 साल है।” 

“यमन, अफ़्रीका के पास पड़ेगा।”

“यमन, अरब प्रायद्वीप के दक्षिण में, पश्चिमी एशिया में है।” 

“ओह, मुझे याद आया।”

“आपने पहले नहीं सुना था?” 

“हाँ, जानता था, कुछ संशय हो रहा था, स्पेलिंग्स से।”

“ओह, हाँ। आप शादीशुदा हैं या अकेले?” 

“शादीशुदा।”

“आप बहुत सज्जन दिखते हैं।” 

“शायद हूँ।”

“मैं अपने माता-पिता की अकेली संतान हूँ। जब में बहुत छोटी थी, माँ का देहांत हो गया था। चार साल पहले पिता का भी गुर्दों की बीमारी से स्वर्गवास हो चुका है। मैं ईसाई हूँ। लेकिन अच्छी मित्रता में धर्म कोई माने नहीं रखता है। मैंने आपको परिपक्व और उत्तरदायी समझा, ये बातें मुझे प्रेरित कीं, इसलिए आपसे सम्पर्क बनाया। आशा करती हूँ, आपसे सुनती रहूँगी।” 

“मेरी शुभकामनाएँ तुम्हें।”

“बहुत-बहुत धन्यवाद।” 

“आप जीविका के लिए क्या करते हैं?” 

“मैं लिखता हूँ और पढ़ता हूँ।”

“आपका क्या मतलब है?” 

“मैं हिन्दी भाषा में लिखता हूँ।”

“मेरा अर्थ था आप क्या काम (जॉब) करते हैं?” 

“कोई काम (जॉब) नहीं।”


“ठीक। मित्र, धन्यवाद।” 

“धन्यवाद।”

“तब आपने यूएस जाने का प्रबंध कैसे किया जब आप कोई काम (व्यवसाय) नहीं करते हैं?” 

“1999 में करता था। अब कोई जॉब नहीं। 1986 में मैंने अमेरिकी रसायनज्ञ के साथ काम किया है। 1984-85 में रूसी कैमिस्ट के साथ।”

“ओह, सच्ची। आपका शुक्रिया।”

“आपका मतलब है, आपने काम करना छोड़ दिया है तो आपके पास करने को दूसरे काम नहीं हैं?” 

“अब, हाँ। लिखता हूँ, घूमता हूँ। पिछली बार यूरोप के अनेक देशों की यात्रा की।”

“इतना दिलचस्प। मैं भी घूमना पसंद करती हूँ। यह शिक्षा का अंग है। आशा है आप जानते हैं कि मैं पढ़ना, नये लोगों से मिलना और उनके रहन-सहन की शैली जानना पसंद करती हूँ।” 

“लेकिन मैं हिन्दी भाषा में लिखता हूँ। अंग्रेज़ी बहुत अच्छी नहीं जानता हूँ।”

“ठीक है यह।” 

“समय के साथ, आप उसमें निपुण हो जायेंगे।” 

“अब यह कठिन है।”

“नहीं, नहीं, आप यह नहीं कह सकते हैं। जब आप उन लोगों के बीच होंगे जो अच्छी अंग्रेज़ी बोल सकते हैं तो आप वहाँ से भी सीख सकते हैं।” 

“हो सकता है।”

“हो सकता है नहीं, यह सच है।” 

“ठीक है, मैं आपको अंग्रेज़ी सीखाऊँगी। क्या आप मेरे से सीखने के इच्छुक हैं?” 

“नहीं, धन्यवाद। थोड़ी जानता हूँ, उतनी बहुत है। जब मैं पेरिस, फ़्राँस में था तो एक लड़के से मैंने अंग्रेज़ी में कुछ पूछा। उसने कहा, ‘फ्रेंच’ और वह दौड़ कर वहाँ से चला गया। हिन्दी विश्व में तीसरी सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है।”

“वॉओ, इसका अर्थ है आप मुझे हिन्दी पढ़ायेंगे।” 

“अच्छा विचार है।”

(उसने फिर अपनी फोटो भेजी) 

“ये आपकी है। अच्छी है।”

“क्या आप अपनी पिक्चर भेज सकते हैं?” 

“मेरी फोटो फ़ेसबुक प्रोफ़ाइल में लगी है।”

“कृपया मेरे लिये भेजिये, ठीक।” 

“मुझे पता नहीं कैसे किया जाता है यह? लेकिन एक कविता भेज सकता हूँ। उसे गूगल में हिन्दी-अंग्रेज़ी अनुवाद की सहायता से तुम अंग्रेज़ी अनुवाद पा सकती हो। तुम्हें अच्छी लगेगी यदि अनुवाद ठीक हुआ तो।” 

“बेटी“

तुम्हारा हँसना, तुम्हारा खिलखिलाना, 
तुम्हारा चलना, 
तुम्हारा मुड़ना, तुम्हारा नाचना, 
बहुत दूर तक गुदगुदायेगा। 
 
मीठी-मीठी बातें, 
समुद्र की तरह उछलना, 
आकाश को पकड़ना, 
हवा की तरह चंचल होना, 
बहुत दूर तक याद आयेगा। 
 
उजाले की तरह मूर्त्त होना, 
वसंत की तरह मुस्काना, 
क्षितिज की तरह बन जाना, 
अंगुली पकड़ के चलना, 
बहुत दूर तक झिलमिलायेगा। 
 
तुम्हारे बुदबुदाते शब्द, 
प्यार की तरह मुड़ना, 
ईश्वर की तरह हो जाना, 
आँसू में ढलना, 
बहुत दूर तक साथ रहेगा। 
 
समय की तरह चंचल होना, 
जीवन की आस्था बनना, 
मन की जननी होना, 
बहुत दूर तक बुदबुदायेगा।”

“ओह, सच्ची! 

“ठीक है तब। मैं कोशिश करूँगी। मैं अब फिर से काम पर जा रही हूँ। मैं आपको फिर लिखूँगी जब कम व्यस्त होऊँगी। अपनी देखभाल ठीक से करना।” 

“धन्यवाद। मेरी शुभकामनाएँ।”

“ठीक है, बाई अभी के लिए।”

बूढ़ा यह सब सुनने के बाद बोला, “फिर उसने सम्पर्क किया या नहीं?”

मैंने कहा, “नहीं।”
 

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