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नदी तब अधिक सुन्दर थी

 

नदी तब अधिक सुन्दर थी
काफल के पेड़
तट से मिले थे, 
नदी चुपचाप, शान्त बह
लगता था हमसे मिला करती थी। 
 
पहाड़ों के बीच
वही तो थी जो बहा करती थी, 
हवा के साथ-साथ। 
 
बीहड़ जंगल से निकल
स्वच्छ-शान्त लगती थी, 
कल-कल, छल-छल करती
हमें हर क्षण रिझाती
विदा का अहसास नहीं होने देती थी। 
 
हम डूबने नहीं
तैरने जाया करते थे, 
हममें एक आगुन्तक था
जो तृप्त होता था। 
 
मछलियों के संसार में
गोता लगा, 
स्वयं के आकलन में उत्तीर्ण हो
स्वयं की अनुभूतियों को इकट्ठा करते थे। 
 
फिर जलवायु परिवर्तन हुआ
बादल फटे, 
रिहुड़ आया
नदी विशाल पत्थरों से पट
घोर आवाज़ में गरज
बचपन की नदी को बहा ले गयी। 
 
और महीनों बाद वहाँ देखा
पानी विशाल पत्थरों के बीच छिपता-छुपाता
अंतस को भिगाता 
बचपन की यात्रा, भूला नहीं था। 
 
रिहुड़=भयंकर भूमि कटाव (कुमाँवनी शब्द) 

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