नम हो चुकी हैं आँखें
काव्य साहित्य | कविता महेश रौतेला15 Sep 2021 (अंक: 189, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
नम हो चुकी हैं आँखें
तुम्हारी बातें करते-करते,
हमारा मोड़ पर मिलना
मौन खड़े रहना
आकाश पर नज़रों का तैरना
शुद्ध प्यार बुनता था।
हवा तब बहुत शुद्ध हुआ करती थी
ठंड में, पतझड़ में
बातें धूप सेका करती थीं,
हम बातों तले
प्यार की छाँव में अनपढ़ से
अव्यक्त रहा करते थे।
सुध जब आयी तो
हंस की तरह सरोवर में
बातें तैरती मिलीं,
हम हमारी जगह नहीं थे
विद्यालय की पीड़ा दिखी थी,
बहुत ठंड थी, पतझड़ था
गुनगुनी धूप दूर-दूर तक बिछी थी।
नम हो चुकी हैं आँखें
तुम्हारी बातें करते-करते।
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