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हर मरा व्यक्ति ईमानदार होता है! 

 

श्रद्धांजलि पर मरे व्यक्ति को कहा जाता है—
अच्छा, ईमानदार, स्नेहिल, शिष्ट
उदार, पूर्ण, उज्जवल, कर्तव्यनिष्ठ। 
जब जाता हूँ—
इस और उस विभाग में, 
कँपकँपी सी आती है
सुर अटक सा जाता है, 
वचन छिन्न-भिन्न हो जाते हैं। 
किसे कहूँ ईमानदार
सूझता नहीं, 
किसे कहूँ अच्छा
मुँह खुलता नहीं। 
पर हर श्रद्धांजलि में
हर मरा व्यक्ति ईमानदार होता है। 

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टिप्पणियाँ

लखनलाल पाल 2025/04/09 09:33 AM

महेश रौतेला जी, *हर मरा व्यक्ति ईमानदार होता है* कविता में सृष्टि के अटल सत्य (मृत्यु) के साथ इस ईमानदारी को जोड़कर आपने इसे भी अटल बना दिया है। सब कुछ जानते मानते हुए भी लोग जाने वाले के लिए यही सब तो कहते हैं है। जानता सब कोई है पर ऐसी धृष्टता कौन करे? कौन करे! अरे भाई कवि है न, वह तो अपने ऊपर...की छितरिया अपने सिर रख ही लेता है। सच कहने में कवि पीछे कहां हटता है। तुम उसका क्या बिगाड़ लोगे? ऐं.. महेश रौतेला जी आपने इस कविता में अपनी ही तरह की नई उद्भावना प्रस्तुत की है। बधाई आपको।

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