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एक बच्चे की दौड़

बचपन दौड़ता है
कभी माँ की गोद की ओर
कभी पिता की ओर। 
वह दौड़ता है तितलियाँ पकड़ने के लिए
मेलों के मेल-मिलाप के लिए। 
 
फिर उसे पगडण्डियां मिलती हैं
और वह और तेज़ दौड़ता है, 
कभी विद्यालय की ओर 
कभी घर की तरफ़। 
 
धीरे-धीरे वह सड़क पर आ जाता है
लम्बी दौड़ के लिए, 
नतमस्तक हो देश के लिए
वह दौड़ता है। 
 
उसकी दौड़ में
न टैंक हैं, न बन्दूकें हैं
न लड़ाकू विमान हैं, 
केवल सेना है, देश है
और नीले आकाश तले
मातृभूमि का सपना है। 
 
वह दौड़ता है
युद्ध के लिए नहीं
सतत शान्ति के लिए, 
खड़ा हो जाता है
सीमा के बिन्दु पर
ध्रुव सत्य बन कर।!

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