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प्रभु

क्षण-क्षण होता नवजागरण,
शुभ्र वचन का ये अवतरण,
अपनी बंशी स्वयं बजा प्रभु
नव गीतों को देते आमंत्रण।
 
अपना चक्र स्वयं चलाते
ज्ञान की गंगा स्वयं बहाते,
परहित अनन्त वस्त्र बढ़ाते
न्याय प्रथा में रथ दौड़ाते।
 
बुद्धि शुद्धि की राह बताते
अनन्त रूप की छवि दिखाते,
समय,सत्य से आगे जाते
रण से आगे  प्यार को रखते। 
 
प्रिय-अप्रिय को विधि कह देते
अपनी परीक्षा स्वयं ले लेते,
जीव जगत के मत्स्य न्याय में
मानव को प्रिय न्याय समझाते।

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