मुनस्यारी (उत्तराखण्ड) यात्रा – 01
संस्मरण | यात्रा वृत्तांत महेश रौतेला15 Nov 2024 (अंक: 265, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
ऊँचे पर्वतों से बीच-बीच में बात करने को मन करता है। हिमालय देखने के लिए मन होता है, गगनचुम्बी। बंगाल के बहुत पर्यटक दिख रहे हैं। जागेश्वर में देवदार वृक्ष नहीं कटे हैं, यह देखकर अच्छा लगा। कहा जाता है आस्था उनकी तुलना शिवजी की जटाओं से करती है। मेरे विचार से जो रास्ता मन्दिर तक अभी जाता है वह पर्याप्त है, आस्तिकों के लिए। कुछ महीनों पहले चर्चा थी कि सड़क चौड़ी करने के लिए एक हज़ार देवदार पेड़ों को काटने के लिए चिह्नित किया गया है। स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया। लोगों ने ‘एक्स’ पर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को लिखा भी था। एक स्थायी शान्ति वहाँ पर मिलती है, आस्था और प्राकृतिक सौन्दर्य के कारण। लगभग १२४ छोटे–बड़े मन्दिरों के बीच आप अपनी अनुभूतियाँ जगा सकते हैं। कसारदेवी क्षेत्र को विशिष्ट चुम्बकीय क्षेत्र के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है ऐसे क्षेत्र पृथ्वी में केवल तीन हैं। माँ दुर्गा अपने एकरूप में यहाँ स्थापित है। मन्दिर विशाल पत्थर पर बना है।
अल्मोड़ा में नन्दादेवी मन्दिर में अपनी आस्था प्रकट कर सकते हैं। उसके परिसर में सात-आठ वरिष्ठ नागरिक प्रातःकाल योगाभ्यास कर रहे थे। नन्दा को माँ भगवती का एक रूप माना जाता है। लोकगीतों में पार्वती और शिवजी के संदर्भ ऐसे आते हैं यहाँ:
“पार्वती क मैत यैति, शिवजि क सरा शा,” (पार्वती का मायका यहाँ है, शिवजी का ससुराल है)। अल्मोड़ा से कोसी नदी के किनारे पहुँचना सुखद अनुभव होता है। कार ड्राइवर एक जगह नाश्ते के लिए रेस्टोरेन्ट पर कार रोकता है और कहता उस पार कोसी नदी किनारे एक बाघिन रहती है। कभी-कभी पानी पीती नदी के किनारे दिखती है। अतः इस स्थान को बाघ-घाटी भी कहते हैं। आज तक उसने किसी को नुक़्सान नहीं पहुँचाया है। सोमेश्वर घाटी होते हुए कौसानी पहुँचते हैं।
कौसानी में दो महिलाएँ घास ले जा रही थीं, सिर पर रखकर। उसमें से एक महिला ने कहा, “पहाड़क जीवन यसै हय पै!” मैंने कहा, “बचपन में हमने भी ये सभी काम किये हैं।” फिर वह बोली फिर तुम भ्यार न्है गनाला! (फिर तुम बारह चले गये होगे! ) मैंने कहा, “होय” (हाँ)।
“जन्म पहले से है
मृत्यु भी पहले से है,
बचपन, यौवन, बुढ़ापा उनसे निकल
घरों के आसपास रहते हैं।
झील की मछलियाँ
किनारे आती हैं,
नाव का नाविक
कुछ कहता रोज़गार पर
उसे भी भय है बेरोज़गारी का।
कौसानी की महिला
कह डालती है—
पहाड़ का जीवन “यसै हय पै“
उसके सामने हिमालय है
वह रोज़ का है,
उसके आसपास पहाड़ हैं
वे भी हर रोज़ के हैं,
घास की गठरी सिर पर रख
वह कहती है—
‘पहाड़क जीवन यसै हय पै’
(पहाड़ का जीवन ऐसा ही हुआ)
मैं सोचता हूँ—
हाँ, श्रम में ही जीवन है
जन्म से मृत्यु तक।”
सुबह हिमालय की चोटियों, नन्दादेवी, त्रिशूल आदि के दर्शन होते हैं। गरुड़ घाटी में धान की फ़सल कट चुकी है।
कौसानी सुमित्रानन्दन पन्त जी का जन्मस्थान है। गाँधी जी यहाँ १४ दिन रहे थे, उन्होंने इसकी तुलना स्विट्ज़रलैंड से की थी। ब्रिटिश महिला (बाद में भारतीय नागरिक) सरला देवी का आश्रम यहाँ है। हिमालय के दर्शन यहाँ से होते हैं। सुबह साफ़ दिखायी देने की सम्भावना होती है जैसे-जैसे दिन चढ़ता है बादल उसे घेरने लगते हैं। पचास साल पहले बाज़ार सिमटा था आज विस्तृत लगता है। गरुड़ और टीट बाज़ार एक हो चुका है।
बैजनाथ मन्दिर पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है। बागेश्वर मन्दिर शिवजी से जुड़ा है। और मालूशाही-राजुला के जन्म-वरदान से संदर्भित लोककथाओं में इसका वर्णन मिलता है। यहाँ गोमती नदी (उत्तराखण्ड), सरयू नदी (उत्तराखण्ड) से मिलती है। कपकोट-भराड़ी का बाज़ार आपस में मिल चुका है। वहाँ गेठी की सब्ज़ी के साथ किया नाश्ता भुलाये नहीं भूलता है, स्वादिष्ट। कार मोड़ों को पार करती सरपट दौड़ रही थी। बिर्थी झरना अपने सौन्दर्य को भरपूर छलका रहा था। सोचा लौटते समय यहाँ रुकेंगे। झरने की ऊँचाई लगभग १४० मीटर है। ऊँचाई पर कार का चलना स्तब्ध करता है। मुनस्यारी में खरस्यु (स्थानीय नाम) के वृक्ष बहुतायत में हैं। ट्रेकिंग में विदेशी लोग भी दृष्टिगत हो रहे थे। वे वहाँ दो-तीन दिन विश्राम भी करते हैं। पंचाचूली आदि हिमालय की चोटियाँ सुबह सुनहरी से श्वेत होती दिख रही हैं। मनोरम दृश्य होता है। पंचाचूली को पांडवों के स्वर्गारोहण से जोड़ा जाता है। होम स्टे लोगों ने खोल रखे हैं। स्थानीय खाना एक दिन पहले बताने से उपलब्ध हो जाता है। हमने पहाड़ी “लायी” की सब्ज़ी देने को कहा दूसरे दिन। शाम को मुनस्यारी बाज़ार घूमने निकला। रास्ते में बच्चे खेल रहे थे। उनके पास से गुज़रा तो नमस्कार की प्रिय ध्वनि सुनायी दी। और मुझे अचम्भा भी हुआ। मैंने नमस्कार में उत्तर दिया। उनसे पूछा कितने में पढ़ते हो? वे बोले हम पाँच में हैं, ये कक्षा-६ में हैं। लड़के-लड़कियाँ लगभग बराबर थीं। एक पुलिस अधिकारी (सेवानिवृत्त) से सुबह भेंट हुई। बोले मुनस्यारी में पैतृक आवास है और माँ के नाम पर होटल खोल रखा है। पहले दस कमरों का था अब बीस कमरों का बना दिया है। नैनीताल में दुकान है। भीमताल में भी ज़मीन ले रखी है। पत्नी नैनीताल में रहती है। मुनस्यारी में भी “नन्दादेवी” का मन्दिर सुन्दर स्थान पर बना है जहाँ से हिमालय और अन्य क्षेत्रों (जोहार घाटी) का विहंगम अवलोकन होता है।
––क्रमशः
मुनस्यारी (उत्तराखण्ड) यात्रा – 01
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