मुट्ठी भर नहीं चाहिए
काव्य साहित्य | कविता डॉ. परमजीत ओबराय1 Mar 2019
अंबर नहीं, अंबर–सा अंबर चाहिए।
क्योंकि –
मुझे मुट्ठी भर नहीं चाहिए।
दृष्टि नहीं,
दिव्य दृष्टि चाहिए।
क्योंकि –
मुझे मुट्ठी भर नहीं चाहिए।
मुझे मृत्यु नहीं मोक्ष चाहिए
क्योंकि
मुझे मुट्ठी भर नहीं चाहिए।
मुझे अपना नहीं, सर्वसुख चाहिए।
क्योंकि–
मुझे मुट्ठी भर नहीं चाहिए।
मुझे दीया नहीं,
सूर्य प्रकाश चाहिए।
क्योंकि–
मुझे मुट्ठी भर नहीं चाहिए।
मुझे सामान या सम्मान नहीं,
प्रभु!
आपका आशीर्वाद चाहिए
क्योंकि –
मुझे मुट्ठी भर नहीं चाहिए।
मुझे दिखावा नहीं,
निर्मल सोच चाहिए।
क्योंकि –
मुझे मुट्ठी भर नहीं चाहिए।
मुझे केवल मानव वह मानव नहीं,
मानवता चाहिए।
क्योंकि–
मुझे मुट्ठी भर नहीं चाहिए।
मुझे सपने नहीं,
साक्षात सफलता चाहिए।
क्योंकि–
मुझे मुट्ठी भर नहीं चाहिए।
मुझे मुट्ठी भर चाहिए,
तो–
देने के लिए चाहिए।
केवल अपनी मुट्ठी भरने–
के लिए नहीं।
मुझे मुट्ठी भर बंद नहीं,
खुली चाहिए।
मुझे बंधन नहीं,
स्वतंत्रता चाहिए।
मुझे बार–बार जग में आना नहीं,
आपके चरणों में निवास चाहिए।
क्योंकि –
मुझे मुट्ठी भर नहीं चाहिए,
आपकी असीम शरण चाहिए।
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