हल
काव्य साहित्य | कविता डॉ. परमजीत ओबराय1 Oct 2021 (अंक: 190, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
जब स्वयं न कर पाए हल,
किसी समस्या का–
तो बड़ी कुर्सी का सहारा क्यों?
सही सलामत मनुष्य को,
लाठी का सहारा क्यों?
लाठी शोभा देती है –
विकलांग को,
क्या रात का अंधकार–
उजाले से युद्ध नहीं करता?
वह जाता तब,
जब उजाला है आता।
अज्ञान रूपी अंधकार पर –
उजाले रूपी ज्ञान की विजय,
निश्चित है।
हरेक का,
विलोम है।
सदा जय न होगी–
अंधकार की,
यह तय है।
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