मन
काव्य साहित्य | कविता डॉ. परमजीत ओबराय15 Sep 2025 (अंक: 284, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
इच्छा रूपी पंख लगाकर—उड़ता है मन,
पाने को
हर वस्तु,
हर क्षण।
कुछ इच्छाएँ—
होतीं पूरी,
कुछ रह जातीं—
अधूरी।
अधिक इच्छाओं के—
पंख,
उड़ नहीं पाते
सपने सभी,
व्यर्थ रह जाते।
इच्छारूपी पंखों को—
सूखने दो,
हवा विश्राम की—
उनमें,
जाने दो।
जितना है बल—
जिनमें,
करो उतनी इच्छाएँ—
वरना,
पंख झड़कर—
या कट कर,
रह न जाएँ।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- आईना
- इंटरनेट दुकान
- कुर्सी
- कोरोना क्यों?
- घृणा
- चक्र
- चक्र
- चाह
- जन्म लेते ही
- जैसे . . .जैसे तुम
- तुम
- दर्पण
- दुनिया
- दूरियाँ
- देना होगा
- नदी की धारा या
- नर संहार
- पापी
- पृथ्वी
- पैसा
- बच्चे
- बहुत रोने का मन करता है
- मन
- मनुष्य
- माँ की कोई उम्र नहीं होती
- माँ-पिता
- माँ–बाप
- मुखिया
- मुट्ठी भर नहीं चाहिए
- रे मन
- विचरण
- शब्दो
- शरीर घट में
- सन्तान
- समय की आग
- हर कोई चाहे
- हल
- ज़हर
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं