माँ-पिता
काव्य साहित्य | कविता डॉ. परमजीत ओबराय15 May 2022 (अंक: 205, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
माँ की ममता व पिता वृक्ष-सा
प्यार न मिला कभी,
ढूँढ़ते थे जिसे—
तरुणावस्था में कभी।
उसे पाने के लिए
किए दिन-रात एक
क्यूँकि पता न था,
था नहीं तब विवेक।
अन्य संबंधों में देखी—
स्वार्थ की बू,
अद्भुत ही होते हैं ये—
जिनसे प्रसन्न होती
है यह अपनी रूह।
बड़े होने पर बच्चे भी
होने लगते दूर,
ईश इन्हें बड़ा क्यों किया—
या हुआ हमसे कोई क़ुसूर।
शायद इनकी दुनिया है—
अलग व विस्तृत,
देख इनका विवेक
मन हो जाए विचलित।
जानेंगे जब तक सच्चाई
प्रेम की,
न होंगे माता-पिता
तब याद आएगी उनकी।
है जीवन का रहस्य-
ये मात-पिता हैं या,
ईश खड़े हैं स्वयं-से।
अपनी कमी को करने पूरी-
ईश ने बनाई है,
इसीलिए इनकी अद्भुत जोड़ी।
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