तुम
काव्य साहित्य | कविता डॉ. परमजीत ओबराय1 Apr 2024 (अंक: 250, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
तुम पथिक से चले गए,
मैं खड़ी इंतज़ार करती रही।
तुम पाषाण से स्थिर रहे,
मैं नदी बन चलती रही।
तुम झील से ठहरे रहे,
मैं अनिल बन बहती रही।
तुम रवि से तीक्ष्ण रहे,
मैं चाँदनी बन फैली रही।
तुम पुरुष थे डटे रहे,
मैं स्त्री बन निभाती रही।
तुम तूफ़ान बन ध्वस्त करते रहे,
मैं धरती बन सँवरती रही।
तुम पुरुष बन जीते रहे,
मैं स्त्री बन मर-मर कर जीती रही।
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