पापी
काव्य साहित्य | कविता डॉ. परमजीत ओबराय1 Jun 2021 (अंक: 182, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
पाप से घृणा करो–
पापी से नहीं,
यह सुना था पर–
क्या यह आजकर्ल
के समय में होता है,
सत्य प्रतीत?
शायद नहीं।
पांडवों ने क्यों मारा–
पापी दुर्योधन को,
पापी रावण को क्यों मारा–
राम ने?
यदि पापी को यों ही माफ जाए–
तो सभी मिलेंगे निस्सहाय।
पापी को यदि न मिले सज़ा,
तो पाप रह जाएगा–
जग में धरा का धरा।
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