पर्वत
काव्य साहित्य | कविता रामदयाल रोहज9 Apr 2017
पर्वत हैं पृथ्वी के अमोल अलंकार
बादल धोते रहते बरसाते हैं प्यार
स्वर्णिम दामिनी से पल-पल निखरते
सरिता का रीता प्याला पावन पानी से भरते
सोते - सितार से सुमधुर संगीत सुनाते
शस्य श्यामल वसुंधरा के छंद गुनगुनाते
स्वस्थ समीर से साँसों में संजीवनी सी भरते
मन की मलीनता चुटकी में हरते
कंधों पर बैठे चाँद तारे मुस्कुराते
रजनी भर जगकर करते दिल की बातें
सूरज के वाजी इसकी ओट में सुस्ताते
शांति यहाँ वानर लंगूर भी पाते
पंछी पेड़ों पर स्वशासन चलाते
अपनी पैनी चंचु का जादू दिखलाते
इन्द्रधनुषी रंगों के फूलों से सज्जित
रमने स्वर्ग से सुर आते रहते नित
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