दिल से ग़ज़ल तक
दिल से ग़ज़ल तक अज़, देवी नागरानी
मैं एक अदना सा तालिब-ए-इल्म, भला उर्दू अदब की एक ऐसी अज़ीम शख़्सियत के मज़मून-ए-कलाम के बारे में क्या कह सकता हूँ, जिसे बर्रे-सग़ीर का हर अदीब सर झुकाकर तस्लीम पेश करता हो। चुनांचे, मेरे लिए यह बहुत बड़े एजाज़-ओ-ज़र्फ़ का सबब है कि आपका यह मज़मून-ए-कलाम मुझ नाचीज़ तक पहुँचा और मुझे इसे मुत’आला करने का शरफ़ हासिल हुआ।
देवी नागरानी साहिबा, जो मेरे लिए माँ का दर्जा रखती हैं, एक बेहद शालीन और शांत मन की मल्लिका हैं। आप जिस अंदाज़ में अपने ख़यालात को अपने अशआर में ढालती हैं, ऐसा लगता है जैसे कि शेर का हर लफ़्ज़ आपसे गुफ़्तगू कर रहा हो। आपका हर शेर मानीखेज़, पुर-ख़ुलूस और पुर-अमन लहजे की चाशनी में नहाया होता है। ये अशआर इस बात की गवाही देते हैं:
सफ़र तय किया यारो दिल से ग़ज़ल तक।
चला सिलसिला यारो दिल से ग़ज़ल तक॥
क़दम पर क़दम साथ शब्दों ने छोड़ा,
बढ़ा फ़ासला यारो दिल से ग़ज़ल तक।
रौशनी की ये नदी बहती रहेगी रात भर।
तीरगी को ज़ब्त वो करती रहेगी रात भर॥
साथ पाने साथ रहने की तमन्ना जागी है,
अब तबीयत यूँ परेशां ही रहेगी रात भर।
आपकी ग़ज़लों में मआशरे में हो रही उथल-पुथल की पीड़ा, तड़प, बेचैनी, और हर मुद्दे को लेकर व्यथित मन की संवेदनाएँ साफ़-साफ़ सुनाई देती हैं। जहाँ एक तरफ़ ज़िंदगी जीने की जद्दोजहद है, वहीं दिल में किसी अनजाने प्यार की टीस भी गाहे-ब-गाहे उभर कर सामने आ ही जाती है। तो दूसरी तरफ़, उम्र के इस पड़ाव पर भी मंज़िलों को फ़तह करने का जज़्बा, कमाल का है। अब आपके ये कलमात हर उस बात की ज़ामिन हैं जो इस नाचीज़ ने महसूस किया है।
जब भी बँटवारे की सूरत आ गयी।
फिर तो बस घर में अदालत आ गयी॥
भाई चारा रह गया दम तोड़ कर,
घोलने को ज़हर नफ़रत आ गयी।
किसी अपने को उसने बोला ही होगा।
उसी ने ये फिर राज़ खोला ही होगा ॥
हिफ़ाज़त में हैं उसकी सब
इनायत की वो चादर है।
नज़र आता नहीं है वो,
नज़र उसकी सभी पर है॥
आपकी ग़ज़लों में ज़िंदगी के खट्टे-मीठे अनुभवों की ख़लिश के बावजूद, अपने उसूलों पर चलते हुए अपनी मंज़िल को पाने की ज़िद, जज़्बा-ओ-जुनूँ कई नव-मशक शायरों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। आप जिस मुश्किल ज़मीन पर आसान तरीक़े से शेर कह जाती हैं, वह हुनर महज़ क़ाबिल-ए-क़द्र ही नहीं, क़ाबिल-ए-तहसीन भी है। हर पाठक और सुनने वाले के दिलों को सुकून पहुँचाता है और कानों में मानो शहद घोल जाता है।
मैं दुआगो हूँ कि देवी जी के और भी बहुत सारे ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित हों, और हम जैसे कमतर लोगों को आपकी बेहतरीन शायरी से रूशनास होने का मौक़ा मिले। अल्लाह आपको तवील उम्र से नवाज़े, आप ता हयात शाद-ओ-आबाद रहें, आमीन।
डॉ. लक्ष्मण शर्मा “वाहिद”
सानपाड़ा, नवी मुम्बई।
पुस्तक की विषय सूची
- समर्पण
- दिल से ग़ज़ल तकः एक सन्दर्भ
- एक ख़ुशगवार सफ़र-दिल से ग़ज़ल तक
- दिल से ग़ज़ल तक अज़, देवी नागरानी
- मेरी ओर से—दिल से ग़ज़ल तक
- 1. सफ़र तय किया यारो दिल से ग़ज़ल तक
- 2. सागर के तट पे आते ही जिसने रची ग़ज़ल
- 3. सुन सको तो सुन लो उनकी दर्द जिनके दिल में है
- 4. न जाने क्यों हुई है आज मेरी आंख कुछ यूँ नम
- 5. ज़िन्दगी करना बसर उसके सिवा मुश्किल मगर
- 6. ग़लत फ़हमी की ईंट छोटी थी फिर भी
- 7. माफ़ कैसे गुनह हुआ यारो
- 8. इल्म होगा उसको फिर तन्हाइयों का
- 9. हमसफ़र बिन है सफ़र ये जाने मंज़िल है कहाँ
- 10. ग़म कतारों में खड़े बाहर, मैं भीतर था निहाँ
- 11. कहाँ हैं गए सारे बच्चों के बच्चे
- 12. रौशनी की ये नदी बहती रहेगी रात भर
- 13. मिट्टी को देके रूप नया बुत बना दिया
- 14. राज़ की है बात जो भी राज़ उसको रहने दो
- 15. तेरे दर पर टिकी हुई है नज़र
- 16 . शमअ पर वो था जला बेवजह
- 17. ये हमराज़ को उसने बोला ही होगा
- 18. बेवफ़ा से मुलाक़ात होती रही
- 19. कल जली जो ग़रीबों की थीं झुग्गियाँ
- 20. वो है रहता ख़फ़ा ख़फ़ा मुझसे
- 21. होगा विश्वास उन शफ़ाओं में
- 22. भीड़ में वो सदा रहा तन्हा
- 23. है ये अनजान सा सफ़र तो नहीं
- 24. शायरी इक इबादत है
- 25. हिफाज़त में हैं उसकी सब, इनायत की वो चादर है
- 26. फिर तो सब राज़ होंगे अयाँ देख लो
- 27. तेरे मेरे बीच वो नाता न था
- 29. कैसी ख़बरें हैं ये, क्या समाचार है
- 30. बादशाहत है कहीं और हैं कहीं गुमनामियाँ
- 31. क्या करता है तेरी मेरी, इन बातों में क्या रक्खा है
- 32. कहीं सर किसी का सलामत नहीं है
- 33. शोर में भी ख़फ़ा है ये ख़ामोशियाँ
- 34. होती बेबस है ग़रीबी क्या करें
- 35. उसे ले आई जो शक्ति, वो आस्था की थी
- 36. नया रंग हो नया ढंग हो, नई आस और उमंग हो
- 37. ईंट-गारा हर तरफ़ है घर नज़र आता नहीं
- 38. जब भी बँटवारे की सूरत आ गयी
- 39. क्यों बात को बढ़ा के यूँ चर्चा बना दिया
- 40. हैवानियत के सामने इन्सानियत झुके
लेखक की पुस्तकें
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लेखक की अन्य कृतियाँ
बाल साहित्य कविता
ग़ज़ल
- अब ख़ुशी की हदों के पार हूँ मैं
- उस शिकारी से ये पूछो
- चढ़ा था जो सूरज
- ज़िंदगी एक आह होती है
- ठहराव ज़िन्दगी में दुबारा नहीं मिला
- तू ही एक मेरा हबीब है
- नाम तेरा नाम मेरा कर रहा कोई और है
- बंजर ज़मीं
- बहता रहा जो दर्द का सैलाब था न कम
- बहारों का आया है मौसम सुहाना
- भटके हैं तेरी याद में जाने कहाँ कहाँ
- या बहारों का ही ये मौसम नहीं
- यूँ उसकी बेवफाई का मुझको गिला न था
- वक्त की गहराइयों से
- वो हवा शोख पत्ते उड़ा ले गई
- वो ही चला मिटाने नामो-निशां हमारा
- ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो
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