दिल से ग़ज़ल तक
समर्पण
समर्पण
परम आदरणीय श्री ‘महरिष’ जी को
जो ग़ज़ल के पिंगलाचार्य रहे और रहेंगे
जिनके प्रांगण में क़दम क्या रखा
लगा जैसे एक मधुबन में पदार्पण हुआ
जहाँ फूलों की मुट्ठियों में छुपी सुगंध
मेरे भीतर के शोर में ख़ामुशी
शोलों में शबनम व् सन्नाटों में संगीत
का अहसास भरते हुए शब्द शब्द एक पदयात्रा
आज भी करती आ रही है।
— देवी नागरानी
पुस्तक की विषय सूची
- समर्पण
- दिल से ग़ज़ल तकः एक सन्दर्भ
- एक ख़ुशगवार सफ़र-दिल से ग़ज़ल तक
- दिल से ग़ज़ल तक अज़, देवी नागरानी
- मेरी ओर से—दिल से ग़ज़ल तक
- 1. सफ़र तय किया यारो दिल से ग़ज़ल तक
- 2. सागर के तट पे आते ही जिसने रची ग़ज़ल
- 3. सुन सको तो सुन लो उनकी दर्द जिनके दिल में है
- 4. न जाने क्यों हुई है आज मेरी आंख कुछ यूँ नम
- 5. ज़िन्दगी करना बसर उसके सिवा मुश्किल मगर
- 6. ग़लत फ़हमी की ईंट छोटी थी फिर भी
- 7. माफ़ कैसे गुनह हुआ यारो
- 8. इल्म होगा उसको फिर तन्हाइयों का
- 9. हमसफ़र बिन है सफ़र ये जाने मंज़िल है कहाँ
- 10. ग़म कतारों में खड़े बाहर, मैं भीतर था निहाँ
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ग़ज़ल
- अब ख़ुशी की हदों के पार हूँ मैं
- उस शिकारी से ये पूछो
- चढ़ा था जो सूरज
- ज़िंदगी एक आह होती है
- ठहराव ज़िन्दगी में दुबारा नहीं मिला
- तू ही एक मेरा हबीब है
- नाम तेरा नाम मेरा कर रहा कोई और है
- बंजर ज़मीं
- बहता रहा जो दर्द का सैलाब था न कम
- बहारों का आया है मौसम सुहाना
- भटके हैं तेरी याद में जाने कहाँ कहाँ
- या बहारों का ही ये मौसम नहीं
- यूँ उसकी बेवफाई का मुझको गिला न था
- वक्त की गहराइयों से
- वो हवा शोख पत्ते उड़ा ले गई
- वो ही चला मिटाने नामो-निशां हमारा
- ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो
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