दिल से ग़ज़ल तक
5. ज़िन्दगी करना बसर उसके सिवा मुश्किल मगर
2122 2122 2122 212
ज़िन्दगी करना बसर उसके सिवा मुश्किल मगर
बेवफ़ा से करते रहना है वफ़ा मुश्किल मगर
घर बनाना ग़ैरों के दिल में न था मुश्किल मगर
अपनों के दिल में क्यों बस जाना लगा मुश्किल मगर
उलझनों का दौर बीता पर न सुलझे मामले
बीच का आसान हल पाना लगा मुश्किल मगर
जूझना लहरों से इतना भी नहीं मुश्किल रहा
हाँ रवाँ सैलाब को था रोकना मुश्किल मगर
चलते चलते एक ऐसे मोड़ पर आकर रुके
हो गया ऐसे में चुनना रास्ता मुश्किल मगर
ज़िन्दगी में आजकल बदलाव लाना है ज़रूर
पाट पाना पीढ़ियों की ये ख़ला मुश्किल मगर
चेहरा पढ़ने की कहाँ तौफ़ीक़ ‘देवी’ अब रही
किसके दिल में चल रहा क्या जानना मुश्किल मगर
पुस्तक की विषय सूची
- समर्पण
- दिल से ग़ज़ल तकः एक सन्दर्भ
- एक ख़ुशगवार सफ़र-दिल से ग़ज़ल तक
- दिल से ग़ज़ल तक अज़, देवी नागरानी
- मेरी ओर से—दिल से ग़ज़ल तक
- 1. सफ़र तय किया यारो दिल से ग़ज़ल तक
- 2. सागर के तट पे आते ही जिसने रची ग़ज़ल
- 3. सुन सको तो सुन लो उनकी दर्द जिनके दिल में है
- 4. न जाने क्यों हुई है आज मेरी आंख कुछ यूँ नम
- 5. ज़िन्दगी करना बसर उसके सिवा मुश्किल मगर
- 6. ग़लत फ़हमी की ईंट छोटी थी फिर भी
- 7. माफ़ कैसे गुनह हुआ यारो
- 8. इल्म होगा उसको फिर तन्हाइयों का
- 9. हमसफ़र बिन है सफ़र ये जाने मंज़िल है कहाँ
- 10. ग़म कतारों में खड़े बाहर, मैं भीतर था निहाँ
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ग़ज़ल
- अब ख़ुशी की हदों के पार हूँ मैं
- उस शिकारी से ये पूछो
- चढ़ा था जो सूरज
- ज़िंदगी एक आह होती है
- ठहराव ज़िन्दगी में दुबारा नहीं मिला
- तू ही एक मेरा हबीब है
- नाम तेरा नाम मेरा कर रहा कोई और है
- बंजर ज़मीं
- बहता रहा जो दर्द का सैलाब था न कम
- बहारों का आया है मौसम सुहाना
- भटके हैं तेरी याद में जाने कहाँ कहाँ
- या बहारों का ही ये मौसम नहीं
- यूँ उसकी बेवफाई का मुझको गिला न था
- वक्त की गहराइयों से
- वो हवा शोख पत्ते उड़ा ले गई
- वो ही चला मिटाने नामो-निशां हमारा
- ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो
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