गमन और ठहराव
काव्य साहित्य | कविता अनुजीत 'इकबाल’1 Jul 2019
सूर्य का आकाशगंगा में
अपरिचित सा मार्ग
विचरण करता जिसके गिर्द
वो श्रोत केंद्र अज्ञात
समस्त तारागण और नक्षत्रपथ
सतत हैं गतिवान
वेगित सागर के खेल से
बोझिल नीरव चट्टान
बिन सरवर के पानी सी धरा
घूमती निरंतर बदहवास
सब कुछ है आंदोलित सा
अस्तित्व का अक्षयतूणीर परिहास
अनवरत चलते इस नृत्य में
स्थिरप्रज्ञ होने की आस
क्योंकि
घटित एक ही समय पर होता
गमन और ठहराव।
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