श्वेत हंस
काव्य साहित्य | कविता अनुजीत 'इकबाल’15 Dec 2019 (अंक: 146, द्वितीय, 2019 में प्रकाशित)
एक श्वेत और मौन हंस का ठिकाना
ढूँढ़ रही हूँ, जो
चितकबरे ‘तूर्य’ हंसों को
“नीर क्षीर विवेक” सीखा
अंत समय का मधुर राग सुना
मानसरोवर यात्रा पर निकल पड़ा है
साधारण नहीं थी उस हंस की नियति
देवसंघ स्वयं आविर्भूत हुआ था
उसको प्रज्वलित परिधान पहनाने
और देवभाव के गौरव देने
मैं रेगिस्तानी झील की
रेत पर ढूँढ़ रही हूँ
उसके पैरों की छाप
लेकिन, रेत पर बने निशान
कब स्थाई होते हैं
अब रह गया है केवल
उसका दिव्य सा मध्यम राग
और तूर्य हंसों के कंठ से
निकलता व्यथित आर्तनाद
चितकबरे= सफेद रंग पर लाल, पीले दागों वाला
तूर्य= शोर मचाने वाली हंस की प्रजाति
नीर क्षीर विवेक= पानी से दूध अलग करने का ज्ञान
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