बुद्ध प्रेमी हैं
काव्य साहित्य | कविता अनुजीत 'इकबाल’1 Sep 2024 (अंक: 260, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
ध्यान की गम्भीरता में बैठे हुए
एक मौन प्रेमी हैं बुद्ध
वह सृष्टि की प्रत्येक प्रेयसी को
स्वतंत्रता से दूर जाने की अनुमति देते हैं
किन्तु उनकी करुणा
उन प्रेमिकाओं को
पुनः प्रत्यावर्तन का आमंत्रण भी
प्रदान करती है
उन के अंतःकरण में प्रवाहित है
असीम अनुराग की सरिता
प्रत्येक विमुख आत्मा को
वह अपने चीवर में समाहित कर लेते हैं
जैसे तट की अशांत लहरों को
सागर आश्रय देता है
पुनः पुनः अनवरत
बुद्ध का प्रेम तटस्थ है
न वह रोकता है, न खींचता है
किन्तु, प्रत्येक वापस लौटी हुई प्रेयसी को
आलिंगन करने का
असीम अनुराग रखता है
ये निशब्द प्रेम
कितना निस्संग और निस्पृह
समस्त बंधनों से मुक्त
प्रस्थान और आगमन से परे
जो बस प्रतीक्षा करना जानता है
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