स्मृतियाँ
काव्य साहित्य | कविता अनुजीत 'इकबाल’15 Jan 2020 (अंक: 148, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
आघात की चिकित्सा कैसे करूँ
लोहे के बड़े ताले लगे हैं
उस द्वार के ऊपर
जिसके पार
विस्तार की चरम सीमा पर
तुम जा चुके हो और
कुंजी मेरे पास नहीं है
मेरे प्रयाण की पूर्णाहुति नहीं हुई
लिहाज़ा, मुझे लौट आना पड़ता है
और टेकना पड़ता है मत्था
घूर्णन करते इस भू-पिंड को
जिस पर, देवों के आशीर्वाद से
तुम मेरे जन्मदाता बने थे
कितना निराशाजनक है कि
अब, तुम नहीं मिलोगे कभी
लेकिन, असीम जन्म यात्राओं में भी
तुम्हारा अभिस्मरण क़ायम रहेगा
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