प्रेम (अनुजीत ’इकबाल’)
काव्य साहित्य | कविता अनुजीत 'इकबाल’1 Apr 2020 (अंक: 153, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
हे महायोगी
जैसे बारिश की बूँदें
बादलों का वस्त्र चीरकर
पृथ्वी का स्पर्श करती हैं
वैसे ही, मैं निर्वसन होकर
अपना कलंकित अंतःकरण
तुमसे स्पर्श करवाना चाहती हूँ
तुम्हारा तीव्र प्रेम, हर लेता है
मेरा हर चीर और आवरण
अंततः बना देता है मुझे
“दिगंबर”
थमा देना चाहती हूँ अपनी
जवाकुसुम से अलंकृत कलाई
तुम्हारे कठोर हाथों में
और दिखाना चाहती हूँ तुमको
हिमालय के उच्च शिखरों पर
प्रणयाकुल चातक का “रुदन”
मैं विरहिणी
एक दुष्कर लक्ष्य साधने को
प्रकटी हूँ इन शैलखण्डों पर
और प्रेम में करना चाहती हूँ
“प्रचंडतम पाप”
बन कर “धूमावती”
करूँगी तुम्हारे “समाधिस्थ स्वरूप” पर
तीक्ष्ण प्रहार
और होगी मेरी क्षुधा शांत
हे महायोगी, मेरा उन्मुक्त प्रेम
नशे में चूर रहता है
(धूमावती- दस महाविद्याओं में पार्वती का एक रूप, जिसने भूख लगने पर महादेव का भक्षण किया था।)
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